________________
७४ तत्त्वार्थ सूत्र
समझने के लिए उपयोगी हैं । इनके द्वारा प्राप्त ज्ञान सम्यक् होता है और मोक्षमार्ग को जानने-समझने तथा उस ओर गति - प्रगति करने में सहायक बनता है ।
नयों का उदाहरण नयों का विषय थोड़ा शुष्क हैं; किन्तु तत्त्व को समझने के लिए उपयोगी भी बहुत हैं । साथ ही नैगम आदि सभी नय परस्पर सम्बन्धित हैं । इन्हें भली प्रकार हृदयंगम करने के लिए एक दृष्टान्त लीजिए।
-
एक व्यक्ति स्थानक की ओर जा रहा है । रास्ते में उसके किसी मित्र ने पूछा- कहाँ जाते हो ?
उसने उत्तर दिया
सामायिक करने ।
नैगम नय की अपेक्षा उसका उत्तर ठीक हैं । क्योंकि यह नय भविष्यग्राही भी है ।
नैगम नय के अनुसार गुरू से आज्ञा माँगते और गुरुदेव द्वारा आज्ञा प्रदान करते ही वह व्यक्ति सामायिक कर्ता हो जाता है ।
अभी वह व्यक्ति आसन बिछाकर बैठ रहा है किन्तु संग्रहनय के अनुसार वह सामायिक कर रहा है ।
व्यवहार नय उसे तब सामायिक में मानता है, जब वह गुरु चरणों में बैठ जाता है ।
जब वह व्यक्ति सामायिक पाठ पढ़ता है, जप ध्यान आदि क्रिया करता है तब ऋजुसूत्र नय उसे सामायिक में स्वीकार करता है ।
शब्द, समभिरूढ़ तथा एवंभूत नय उसे तभी सामायिक में स्वीकार करते हैं, जबकि वह व्यक्ति सामायिक में उपयोगवान हो ।
इस प्रकार स्पष्ट है कि पूर्व - पूर्ववर्ती नय से उत्तर - उत्तरवर्ती नय सूक्ष्मग्राही हैं । पूर्व-पूर्व नय अधिक विस्तृत क्षेत्र को ग्रहण करते हैं, उनका विस्तार अधिक (Wide span) है और उत्तर - उत्तरवर्ती नय सूक्ष्म ( to the point) बनते जाते है ।
यह नय-प्रणाली की वैज्ञानिकता है । किसी भी विषय के परिज्ञान की विज्ञान - समस्त अध्यापन विधि हैं । सामान्य ज्ञान से प्रारंभ करके उस विषय के तलछट में पहुंचा जाता है, तभी वह विषय पूरी तरह हृदयंगम हो पाता है ।
यही नयवाद का ज्ञान - प्राप्ति में महत्व है ।
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org