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अध्याय १ : मोक्षमार्ग ४९ (श्रुत निश्रित (मतिज्ञान) चार प्रकार का कहा गया है - (१) अवग्रह (२) ईहा (३) अवाय और (४) धारणा । मतिज्ञान के भेद -
अवगृहेहावायधारणाः ।१५। (१) अवग्रह (२) ईहा) (३) अवाय और (४) धारणा - यह मतिज्ञान के भेद है ।
विवेचन - प्रस्तुत सूत्र में मतिज्ञान के अवग्रह आदि चार प्रमुख भेद बताये गये है ।
(१) अवग्रह - किसी पदार्थ की सामान्य सत्ता को देखने, अर्थात् सामान्य रूप से किसी वस्तु को देखने, उसके आकार का अवबोध होने के बाद 'यह काली है या श्वेत' ऐसी जिज्ञासा का ग्रहण - अवग्रह है ।
(२) ईहा - 'यदि वह वस्तु सफेद है तो श्वेत ध्वजा होनी चाहिए' ऐसी जिज्ञासा ईहा मतिज्ञान है ।
(३) अवाय - विशेष चिन्हों से उस वस्तु का निश्चय हो जाना; जैसे 'यह ध्वजा ही है' अवाय मतिज्ञान है ।
(४) धारणा - अवग्रह, ईहा, अवाय द्वारा प्राप्त ज्ञान स्मृति में संजोकर रख लेना, विस्मृत न होने देना, धारणा मतिज्ञान है ।
यह चारों भेद क्रिया अथवा मतिज्ञान की प्राप्ति की अपेक्षा से हैं । आगम वचन - -
चउव्विहा उग्गहमती पण्णता. खिप्पामोगिण्हति, बहुमोगिण्हति, बुहविधमोगिण्हति धुवमोगिण्हति अणिस्सियमोगिण्हइ असंदिद्धमोगिण्हइ ।
छविहा ईहामती पण्णता..... एवं ...... छविहा अवायमति पण्णत्ता एवं छविहां धारणा पण्णता . बहुं धारेई बहुविहं धारेइ पोराणं धारेति दुद्धरं धारेति अणिस्सितं धारेति असंदिद्धं धारेति ।
-स्थानांग, स्थान ६, सूत्र ५१०
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