________________
५६ तत्त्वार्थ सूत्र
की जा सकती है; जैसे (१) अक्षरश्रुत (२) अनक्षरश्रुत (१) भावश्रुत (२) द्रव्यश्रुत ( १ ) कालिक, (२) उत्कालिक आदि ।
किन्तु सूत्र में अन्तिम अंश से ध्वनित होता है कि आचार्य को (१) अंगबाह्य और (२) अंगप्रविष्ट ये दो भेद ही अभीष्ट हैं । क्योंकि उन्होंने आगे १२ भेदों का संकेत किया है जो अंगप्रविष्ट के भेद हैं । अंगप्रविष्ट
(१) आचारांग (२) सुत्रकृतांग (३) स्थानांग (४) समवायांग (५) भगवती ( विवाह पण्णत्ति) (६) ज्ञाताधर्मकथा (७) उपासक दशा (८) अंतकृद्दशा ( ९ ) अनुत्तरोपपातिक दंशा (१०) प्रश्नव्याकरण (११) विपाक सूत्र और (१२) दृष्टिवाद |
ये अंगशास्त्र भी कहलाते हैं और भगवान तीर्थंकर की वाणी के नाम से विश्रुत एवं प्रतिष्ठित हैं ।
-
नंदीसूत्र (सूत्र ७२ ) में श्रुतज्ञान के निम्न १४ भेदों का वर्णन है। (१) अक्षरश्रुत (२) अनक्षरश्रुत (३) संज्ञिश्रुत ( ४ ) असंज्ञिश्रुत (५) सम्यकश्रुत (६) मिथ्याश्रुत (७) सादिक श्रुत (८) अनादिक श्रुत ( ९ ) सपर्यवसित श्रुत (१०) अपर्यवसिंत श्रुत ( ११ ) गमिक श्रुत (१२) अगमिक श्रुत (१३) अंगप्रविष्ट श्रुत (१४) अनंगप्रविष्ट श्रुत ।
आधुनिक युग में प्रचलित सभी ज्ञान-विज्ञान, लिपियाँ, भाषाएं आदि सम्पूर्ण कला एवं साहित्य श्रुतज्ञान के अन्तर्गत ही हैं ।
आगम वचन
-
ओहिणाण पच्चक्खं दुविहं पण्णत्तं ...
भवपच्चत्तियं च खओवसमियं च ।
दोहं भवपच्चत्तियं - देवाणं च णेरतियाणं च ।
दोहं खओवसमियं - मणुस्साणं च पंचन्दियतिरिक्खजोणियाणं तं समासओ छविवहं पण्णत्तं आणुगामियं, अणाणुगामियंच, वड्ढमाणयं, हायमाणयं, पडिवाति, अपडिवाति ।
नंदी सूत्र, सूत्र ६-९
अवधिज्ञान प्रत्यक्ष दो प्रकार का है
(२) क्षायो - पशमिक ।
-
भवप्रत्ययिक अवधिज्ञान दो को होता है
Jain Education International
(१) भवप्रत्ययिक
-
नारकियों को ।
क्षायोपशमिक अवधिज्ञान दो को होता है और पंचेन्द्रिय (मन सहित
संज्ञी) तिर्यचों को
-
(१) देवों को और (२)
-
।
For Personal & Private Use Only
(१) मनुष्यों को
www.jainelibrary.org