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५४ तत्त्वार्थ सूत्र
इन ३३६ भेदों में ४ प्रकार की बुद्धि जोड़ने पर मतिज्ञान के ३४० कुल भेद होते हैं । नंदीसूत्र में इन चार प्रकार को बुद्धियों के नाम इस प्रकार दिये गये हैं ।
उप्पत्तिया वेणइया कम्मिया पारिणामिया । बुद्धी चउव्विहा वुत्ता पंचमा नोबलभई ॥
___-सूत्र ४७ के अन्तर्गत गाथा ५८ - मतिज्ञान इनके लक्षण इस प्रकार है -
(१) उत्पत्तिया (औत्पातिकी) बुद्धि - क्षयो पशम के प्रभाव से पहले बिना जाने-देख-सुने विषय को विशुद्ध रूप में तत्काल ग्रहण करने की मानसिक शक्ति । यह बुद्धि अचानक ही प्रगट होकर कार्यसिद्धि में सहायक बनती है ।
(२) वेणइया (वैनयिकी) बुद्धि - यह गुरुजनों की विनयपूर्वक सेवा करने से प्राप्त होती है । यह बुद्धि वर्तमान और भावी जीवन में फल देने वाली तथा कार्यभार को वहन करने में समर्थ होती हैं ।
(३) कम्मिया (कर्मजा) बुद्धि - उपयोगपूर्वक कार्य करते रहने से प्राप्त होने वाली दक्षता अनुभवशीलता ।
(४) पारिणामिया (पारिणामिकी ) बुद्धि - अनुमान, हेतु और दृष्टान्त से कार्य सिद्ध करने वाली, आयु की परिपक्वता से पुष्ट होने वाली, लोकहितकारी बुद्धि पारिणामिकी है । आगम वचन - मईपुव्वं जेण सुअं न मई सुअपुविआ ।।
__ - नन्दी सूत्र, सूत्र २४ सुयनाणे दुविहे पण्णते-अंगपविठे चेव अंगबाहिरे चेव ।
___ - स्थानांग, स्थान २, उ. १, सूत्र ७१ मतिज्ञानपूर्वक श्रुतज्ञान होता है । श्रुतज्ञानपूर्वक मतिज्ञान नहीं होता।
श्रुतज्ञान दो प्रकार का है - (१) अंगप्रविष्ट और (२) अंगबाह्य। श्रुतज्ञान का लक्षण और भेद -
श्रुतं मतिपूर्वकं यनेकद्वादशभेदं ।२०।
मतिज्ञानपूर्वक श्रुतज्ञान होता है तथा इस (श्रुतज्ञान) के दो अनेक और बारह भेद हैं ।
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