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अध्याय १ : मोक्षमार्ग ४३, हैं । वे सिद्धशिला में अविस्थत होकर शाश्वत आत्मिक आनन्द में निमग्न हो जाते हैं ।
गुणस्थानों सम्बन्धी विशेष' बातें - उक्त चौदह गुणस्थानों में से १,४,५,६,१३ -यह पांच गुणस्थान शाश्वत हैं; अर्थात् लोक में सदा रहत ह । - परभव में जाते समय जीव के १,२,४- ये तीन गुणस्थान होते हैं ।
३,१२,१३ - इन तीन गुणस्थानों में मरण नहीं होता ।
३,८,९,१०,११,१२,१३,१४- इन गुणस्थानों में आयु का बन्ध नहीं होता ।
१,२,३,५,११ - यह पाँच गुणस्थान तीर्थंकर नहीं फरसते । ४,५,६,७,८- इन पाँच गुणस्थान में ही तीर्थंकर प्रकृति का बन्ध होता
१२,१३,१४- यह तीन गुणस्थान अप्रतिपाती है, यानी इन गुणस्थांनों से जीव का पतन नहीं होता ।।
१,४,७,८,९,१०,१२,१३,१४- इन नौ गुणस्थानों को मोक्ष जाने से पहले जीव एक या अनेक भवों में अवश्य फरसता है ।
इन चौदह गुणस्थानों के माध्यम से जीव की आन्तरिक विशुद्धि की खोज की जाती है ।
मार्गणास्थानों और गुणस्थानो में अन्तर हैं । गुणस्थानतो जीव के आध्यात्मिक विकास की अवस्था हैं, या विशुद्धि के सोपान हैं ।अतः एक समय में एक जीव किसी एक ही गुणस्थान में रह सकता है । किन्तु मार्गणास्थान जीव की केवल अवस्थिति को ही द्योतित करते हैं । अतः एक जीव एक समय में कई मार्गणास्थानों में रह सकता है ।
गुणस्थान एक जीव को एक समय में एक ही हो सकता है; जबकि मार्गणास्थान दस भी हो सकते हैं । आगम वचन -
नाणपंचविहं (१) आभिणिबोहियनाणं (२) सुयनाणं (३) ओहिनाणं (४)
१ प्रवचनसारोद्वार २२५४, गा. १३०२; प्रवचन द्वार ८९-९० गा. ६९४-७०८ तथा चौदह गुणास्थान का थोकड़ा ।
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