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आसो शुद १५ स्वस्ति श्री पाश्वनाथ जिनेन्द्र' नमस्कृत्य. रानीगांवसे लि. विजयसुशील सूरि आदि....
तत्र विनयादि गुण समल कृत विद्वद्वर्य पन्बासप्रवर श्री पूर्णानदविजयजी गनिवरादि योग्य सांवत्सरिक अनुवन्दना-वन्दना।
परमाराध्य श्री देव-गुरु-धर्म के पसाय से यहां आनद मंगल पूर्वक खुखशाता प्रवतमान है। वहां पर भी विशेषपत्र मिला । समाचार ज्ञात हुए ! ... मंगल आशीर्वाद
विद्वद्वयं पन्यासप्रवर श्री पूर्णानदविजयजी गणिवरे पूर्वे 'श्री भगवती सूत्र सार संग्रह ' नामक सर्व श्रेष्ठ आगम साहित्य ग्रन्थ का सर्जन कर के प्रकाशित करवाया था।
उस माफिक अभी भी 'श्री प्रनव्याकरप' नामक प्रच विवेचनसे पूर्ण प्रकाशित करपा रहे है।
ऐसे शुभ कार्यो की भूरि अनुमोदना । भविष्य में ती अपने वरद हस्ते ऐसे अनेक प्रन्पोका सर्जन कर के परम शासन प्रषावना करते रहे।
हमारी ओर से अनुवन्दना बोर सुखशातापूर्वक मंगल आशीर्वाद ।
शाम-ध्यान-संबमादिमें विशेष उधम । रानीगांव (राजस्थान)
बनाचाय २०४० बासो सुरि १५ पिजयमशीन्सूरीश्वरजी
धन।