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पद्मनन्दिपञ्चविंशतिका । पुरुषस्य मोक्षइति) अर्थात् वुद्धि, सुख, दुःख इच्छा, द्वेष, प्रयत्न, धर्म, अधर्म, संस्कार, ये आत्माके नौ विशेषगुण हैं जिससमय ये नौ गुण आत्मासे जुदे होजाते हैं उसीसमय उसआत्माकी मोक्ष होजाती है इसलिये मोक्षावस्थामें आत्मा सर्वथा जड़ है उसका आचार्य, समाधान देतेहैं (नजड़ः ) अर्थात् तुमने जो एकान्तसे आत्माको जड़ मानरक्खा है वह सर्वथा असत्य है क्योंकि ज्ञान आदि गुण आत्मासे सर्वथा भिन्न व रूप नहीं हैं जिससे वे मोक्षअवस्थामें छूट जावे तथा ज्ञानगुणके छूटनेसे सर्वथा आत्मा जड़ रहजावे किन्तु कथंचित आत्मा जड़ है तथा कथंचित आत्मा चेतनभी है अर्थात् जबतक इसआत्माके साथ कर्मोंका संबंध रहता है उससमय तो इसको जड़भी कहसक्ते हैं किन्तु जिससमय मोक्षावस्थामें कर्मों का संबंध छूट जाता है। उससमय यह चेतन है जड़नहीं क्योंकि ज्ञानादिगुणोंसे आत्मा कोई जुदी वस्तु नहीं तथा ज्ञानादिगुण चेतन हैं और ज्ञानादिगुणोंका जिस अवस्थामें प्रकटीकरण होजाता है वही वास्तविक मोक्ष कही गई है इसलिये सर्वथा जड़ कदापि आत्मा नहीं होसक्ता।
तथा चार्वक जिसको नास्तिक कहते हैं उसका सिहांत है कि आत्मा कोई भिन्न पदार्थ नहीं तथा आदि अन्तसे रहितभी नहीं किन्तु जिससमय पृथ्वी जल तेज वायु इनचारभूतोंका परस्परमें मेल होता है उससमय एक दिव्यशक्ति उत्पन्न होजाती है वहीं आत्मा तथा चेतन नामसे पुकारी जाती है इसलिये जच आत्मा कोई वस्तु ही न ठहरा तो उसके आधीन जो स्वर्ग तथा मोक्ष आदि अवस्था मानी हैं वे सर्वथा झूठ है क्योंकि यदि वे होतीं तो प्रत्यक्षदेखने में आती तथा आत्माभी आदि अंतकर रहित सिद्ध होता इसलिये यह देहही आत्मा है तथा संसारमें अच्छा २ खानेको न मिलना यही नरक है तथा अच्छा २ खानेको मिलना यही स्वर्ग है तथा मोक्ष है इसलिये जिसको स्वर्ग तथा मोक्षके स्वरूपका अनुभव करना हो तो संसारमें खूब कर्ज लेकर मिष्टान्न
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