________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kalashsagarsuri Gyanmandir
܀ ܀ ܀ ܀܀܀܀܀܀܀܀܀܀܀܀܀܀܀܀܀܀܀܀܀܀܀܀܀܀܀܀܀܀܀܀܀܀܀܀܀
܀܀܀܀܀܀܀܀܀܀܀܀܀܀܀܀܀܀܀܀܀܀܀܀܀܀܀܀
पअनन्दिपञ्चविंशतिका ।
श्रीमाज्जिनवरस्तोत्रप्रारंभः। दिखे तुमम्मि जिणवर सहलाहूआइ मज्झ णयणाई चित्तं गत्तं च लहू अमिएणव सिंचियं जायं ॥
हटे त्वयि जिनवर सफलीभूतानि मम नयनानि
चित्तं गात्रं च लघु अमृतेनबै सिंचितं जातम् ॥ अर्थः--हे जिनेश हे प्रभो आपके देखनेपर मेरे नेत्र सफल होते हैं तथा मेरा मन और मेरा शरीर ऐसा मालूम होता है कि मानों अमृतसे ही शीघ्र सींचा गया हो ।
भावार्थः-उत्तम पदार्थोके देखनेसे ही नेत्र सफल होते हैं हे भगवन् आप उत्तमपदार्थ हैं इसलिये आपके देखनेसे मेरे नेत्र सफल होते हैं तथा मनमें और मेरे शरीरमें इतना आनंद होता है मानों ये दोनों अमृतसे ही सींचे गये हों ॥ १ ॥
दिखे तुमम्मि जिणवर दिहिरासेसमोहतिमिरेण तह णहूं जह दिळं जहट्टियं तं मए तच्च ॥
रष्टे खयि जिनवर दृष्टिहरनिखिळमोहतिमिरेण
तथा नष्टं यथा दृष्टं यथास्थितं तन्मया तत्त्वम् ।। अर्थः-हे जिनेन्द्र आपके देखनेपर, जो सर्वथा दृष्टिको रोकनेवाला था ऐसा मोहरूपी अंधकार इसरीतिसे नष्ट हो गया कि मैंने जैसा वस्तुका स्वरूप था वैसा देखलिया ।
भावार्थ:-जिसप्रकार अंधकारमें वस्तुका वास्तविक स्वरूप थोड़ाभी नहीं मालूम पड़ता क्योंकि अंध
܀܀܀
܀ ܀ ܀ ܀ ܀ ܀ ܀ ܀ ܀ ܀ ܀ ܀ ܀ ܀ ܀
܀܀܀܀܀܀܀܀܀܀܀܀܀܀܀܀܀܀܀܀܀܀܀
८५
For Private And Personal