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पद्मनन्दिपश्चविंशतिका । अर्थ:--हे जिनवर प्रभो आपके दर्शनसे मेरे दूसरे जन्मोंकी तो बात दूरही रहो किंतु इसजन्ममेंभी मुझे नानाप्रकारके सुखोंकी प्राप्ति होती है और मेरे समस्तपाप दूरभग जाते है॥
भावार्थ:-हेजिनेश आपके दर्शनोंमें इतनी शक्ति है कि जो मनुष्य आपको विनयभावसे देखता है | उसमनुष्यके जन्मजन्मांतरके समस्तदुःख नष्ट हो जाते हैं तथा नानाप्रकारके सुखोंकी प्राप्ति होती है यह तो कुछ बात नहीं अर्थात् जन्मान्तरके दुःख तो अवश्य ही नष्ट होते हैं तथा जन्मांतरमें सुख मिलता ही है किंतु हे प्रभो इसजन्ममें भी आपके दर्शनोंसे नानाप्रकारके सुखोंकी प्राप्ति होती है तथा समस्तप्रकारके दुःखाका नाश होजाता है अर्थात् आपके दर्शन तत्काल फलके देनेवाले हैं ॥ १० ॥
दिहे तुमम्मि जिणवर वज्झइ पट्टो दिणम्मि अजयणे सहलत्तणेण मज्झे सव्वदिणाणंपि सेसाणं ॥
रष्टे वयि जिनवर वध्यते पहो दिनेऽद्यतने
सफलरवेन मध्ये सर्वदिनानामपि शेषाणाम् ।। अर्थः हे प्रभो जिनवर आपके दर्शनों के होनेकेकारण समस्त दिनोंमें आजका दिन उत्तम तथा सफल है ऐसा जानकर पट्टवंधन किया ।
भावार्थ:-समस्त दिनों में मेरा आजका दिन उत्तम तथा सफल है ऐसा मैं समझता हूं क्योंकि आज मुझे आपका दर्शन मिला है ॥ ११ ॥
दिट्टे तुमम्मि जिणवर भवणमिदं तुज्झ महमहग्यतरं सव्वाणंपि सिरीणं संकेयघरेव पडिहाये ।
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