________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailashsagarsuri Gyanmandir
॥४४५॥
܀܀܀܀܀܀܀܀܀܀܀܀܀܀܀܀܀܀܀܀܀܀܀܀܀܀܀܀܀܀܀܀܀܀܀܀܀܀܀܀܀܀܀܀܀܀܀܀܀܀܀܀܀܀܀܀
पमनन्दिप श्चविंशातका। अर्थ:-जिसजिनेन्द्रभगवानके समस्तसुप्रभातस्तोत्रको आनंदयुक्त देवांगना तथा इंद्र गानकरते हैं तथाउपमारहित जिससुप्रभातस्तोत्रको वंदीजन राजाओंकेसामने सुबह केसमय पढ़ते हैं और गानकरती हुई नागकन्याओंसे गायेहुये जिस स्तोत्रको विद्याधर तथा नागेन्द्र सुनतेभी हैं उस तीनोंलोकको हर्षके देनेवाले भगवान के सुप्रभातस्तात्रको मैं शिर नवाकर नमस्कार करता हूं।
भावार्थ:-जिसजिनेंद्रभगवानके स्तोत्रको स्वर्ग तो बड़े आनंदसे देवांगना तथा इन्द्र गानकरते हैं और मध्यलोकमें राजाओंकेआगे प्रातःकालमें वंदीजन गानकरते हैं तथा अधोलोकमें नागकन्या अपने मधुर स्वरसे गानकरती है जिसको बड़ी लालसासे विद्याधर तथा नागेन्द्र सुनते हैं ऐसे उस तीनोंलोकोंको हर्षके करनेवाले भगवानके सुप्रभातको में नमस्कार करता हूं ॥४॥ उद्योते सति यत्र नश्यतितरां लोकेऽन्धचौरश्चिरं दोषेशोतरतीत यत्र मलिनो मंदप्रभो जायते । । यत्रानीतितमस्ततेर्विघटनाजाता दिशो निर्मला वंद्य नंदतु शाश्वतं जिनपतेस्तत्सुप्रभातं परम् ॥
अर्थः--जिसजिनेन्द्रभगवानके सुप्रभातके प्रकाशमान होनेपर संसारमें पापरूपीचोर सर्वथा नष्ट होजाते हैं तथा मनरूपी चंद्रमा मलिन मंदप्रभ( फीका ) होजाता है और अनीतिरूपी अंधकारके सर्वथा नाशहोजानेके कारण समस्त दिशायें स्वच्छ होजाती हैं तथा जो भगवानका सुप्रभात उत्कृष्ट है तथा सदाकाल रहनेवाला है और वंदनीक है ऐसा वह जिनेन्द्रभगवानका सुप्रभात सदा इसलोकमें जयवंत प्रवर्ती ।
भावार्थ:-जिसप्रकार सुवहके होजानेपर सवचोर नष्टहोजाते हैं और चंद्रमा मलिन तथा फीका पड़जाता है तथा समस्त अंधकारके नाशहोजानेसे दिशा सर्वथा स्वच्छ होजाती है और जो उत्कृष्ट तथा वंद्य है उसीप्रकार श्रीजिनेन्द्रदेवका भी सुप्रभात ( केवलज्ञान ) है क्योंक इसजिनेन्द्र के सुप्रभातके प्रकाशमान होने
For Private And Personal