________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailashsagarsuri Gyanmandir
00000000000000000००००००००००००००००००००964640040300448846
पद्मनान्दपश्चविंशतिका। तरंगे विद्यमान हैं और सदा आनंदको देनेवाली उत्तम शीतलताकर मनोहर है और जो समस्त पापोंका नाश करनेवाला है ऐसे इस परमात्मा नामक उत्तम तीर्थमें ही सदा स्नान करो अनेक प्रकारके प्रयत्नोंसे व्याकुल होकर क्यों शुद्धताकेलिये प्रयाग आदिक तीर्थो में गंगा आदिक नदियोंपर भटकते फिरते हो ।
भावार्थ:-बहुतसे भोलेप्राणी शुद्धिके अर्थ सानकेलिये प्रयाग आदि तीर्थों में गंगा आदि तीर्थोपर भटकते फिरते हैं किंतु परम करुणाके धारी आचार्य उनपर करुणाकर उपदेश देते हैं कि यदि तुम शुद्धिके लिये तीर्थ में स्नान करनेकी इच्छा रखते हो तो तुम इस परमात्मारूपी उत्तम तीर्थमें ही स्नान करो क्योंकि जिसप्रकार प्रयाग आदि तीर्थोम गंगाआदि नदियोंका जल रहता है उसीप्रकार इस परमात्मारूपी तीर्थमें भी सम्यग्ज्ञानरूपी उत्तम पवित्र जल मौजूद है तथा जिसप्रकार प्रयागआदि तीथों में गंगाआदि नदियोंका जल मनोहर लहरोंकर सहित होता है उसीप्रकार इस परमात्मारूपीतीर्थमें भी सम्यग्दर्शनआदि उत्तम तरंगोंका समूह भौजूद है तथा जिसप्रकार प्रयागआदि तीर्थ गंगाआदि नदियों के जलसे शीतल रहते हैं उसीप्रकार यह परमात्मारूपी तीर्थ भी सदा जो आनंदविशेष वही हुई शीतलता उसकर मनोहर है तथा यह आत्मारूपातीर्थ समस्त पापोंका नाश करनेवाला है अर्थात जो पुरुष उसमें गोता मारनेवाले हैं उनकी आत्माके साथ किसीप्रकारके कर्ममलका संबंध नहीं रहताहै इसलिये यही समस्त तीर्थों में उत्तम तीर्थ है किंतु जो वास्तविक तीर्थ नहीं केवल तीर्थके समान मालूम पड़ते हैं ऐसे प्रयागआदि तीर्थोंमें गंगाआदि नदियोंपर तुम क्यों व्यर्थ स्नान करते हैं। नो दृष्टः शुचितत्त्वनिश्चयनदो न ज्ञानरत्नाकरः पापैः कपि न दृश्यते च समतानामातिशुद्धा नदी॥ तेनैतानि विहाय पापहरणे सत्यानि तीर्थानि ते तीर्थाभाससुरापगादिषु जडा मज्जति तुष्यति च ॥
अर्थः-मूर्खलोगोंने अपने पापों तथा दुर्भाभ्योंकी कृपासे न तो पवित्र निश्चयरूपी तालाबको देखा है
...........................................००००००००००००
For Private And Personal