Book Title: Padmanandi Panchvinshatika
Author(s): Padmanandi, Gajadharlal Jain
Publisher: Jain Bharati Bhavan

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Page 522
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailashsagarsuri Gyanmandir ॥५०९॥ ܀܀܀܀܀܀܀܀܀܀܀܀܀܀܀܀܀܀܀܀܀܀܀܀܀܀܀܀܀܀܀܀܀܀܀܀܀܀܀܀܀܀܀܀܀܀܀܀܀܀܀ पचनन्दिपञ्चविंशतिका। - उत्तम फलका देनेवाला होता तो वे अष्टमी चतुर्दशीआदि पोंमें अपनी स्त्रीका त्याग क्यों करदेते तथा तपके समय भी उनअपचीखियोंको विद्वानलोग क्यों छोड़ देते । भावार्थ:-जैनशास्त्रोंमें अष्टमी चतुर्दशी पोंका बड़ाभारी माहात्म्य मानागया है तथा जिनर भव्यजीवोंने इन पा में यथायोग्य व्रतोंका पालनकिया है उनको अनेकप्रकारके उत्तमोत्तम फलोंकी प्राप्ति भी हुई हैं इसलिये उत्तमफलके अभिलाषी सज्जनपुरुप इनपा में यथायोग्य भलीभांति व्रतोंका आचरण करते हैं जिससमय ये सज्जनपुरुष अष्टमी चतुर्दशी आदिपा में उपवास आदि व्रतोंको धारण करते है उससमय वे परस्त्रियों का त्यागतो करतेही हैं किंतु अपनी स्त्रियोंको भी सर्वथा त्यागकरदेते हैं इसीयुक्तिको लेकर आचार्य उपदेश देते हैं कि हे अत्यंतनिकृष्टमैथुनकर्मकेअभिलाषीपुरुषो ? यदि सज्जनोंको अपनी स्त्रियोंमें कीहुई प्रीति अथवा उनकेसाथ कियाहुआ मैथुन शुभफलका देनेवाला होता तो सज्जनपुरुष पवा में उपवास व्रतोंको धारण करतेसमय स्त्रियोंका क्यों सर्वथा त्यागकरदेते इसलिये मालूम होताहै कि अपनी स्त्रियोंकेसाथ कियाहुआ भी मैथुन किसीप्रकारके शुभफलोंका देनेवाला नहीं है तथा जिससमय सज्जनपुरुष संसारमें कामभोग आदिसे विरक्त होकर तपको जाते हैं उससमय सर्वथा स्त्रियोंका त्याग करकेही जाते हैं बताओ यदि स्त्रियोंकेसाथ मैथुन करनेसे जराभी शुभफलकी प्राप्ति होती तो सज्जनपुरुष तपके समय अपनी स्त्रियोंको साथ क्यों नहीं लेजाते इसलिये साफ मालूम होता है कि मैथुनकरनेसे थोड़ेसेभी उत्तमफलकी प्राप्ति नहीं होती ॥ ३ ॥ रतिपतेरुदयान्नरयोषितोरशुचिनोर्वपुषोः परिघहनात् । अशुचि सुष्ठुतरं तदितो भवेत्सुखलवे विदुषः कथमादरः ॥४॥ अर्थः-जिससमय कामकी उत्पचि होती है उससमय कामकी उत्पत्तिसे अत्यंत अपवित्र दोनोंशरीरोंका 290000०००००००००००००००००००००००००००००००००००००.........." For Private And Personal

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