________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kalashsagarsuri Gyanmandir
܀܀܀܀܀܀܀܀܀܀܀܀܀܀܀܀܀܀܀܀܀܀܀܀܀܀܀܀܀܀܀܀܀܀܀܀܀܀܀܀܀ܝܙܘܙܙܘܙ܀܀
पचनन्दिपश्चविंशतिका । घातियाकर्मों का सर्वथा नाशकरदिया है इसलिये काँसे रहित होनेके कारण वे शांत हैं और वे स्वयंशांत समस्त जगतमें भी शांतिके करनेवाले हैं इसलिये इसप्रकार ख परकी शांतिके करनेवाले और समस्त लक्ष्मीके स्वामी श्रीशांतिनाथभगवानको मैं मस्तक झुकाकर शांतिकी प्राप्तिकेलिये नमस्कार करता हूं ॥ ११ ॥
कुंथुनाथतीर्थकरकी स्तुति । दयांगिनां चिड़ितयं विमुक्तये परिग्रहद्धन्द्धविमोचनेन तत्
विशुद्धमासीदिह यस्य मादृशां स कुंथुनाथोऽस्तु भवप्रशांतये ॥ अर्थ:-चार तथा अभ्यंतरके भेदसे समस्तप्रकारके परिग्रहों के छोड़ने के कारण जिस कुंथुनाथभगवानकें : समस्त प्राणियोंपर दया और चैतन्य ये दोनों विशुद्ध होगये वे श्रीकुंथुनाथ भगवान मेरेसमान मनुष्योंको संसारकी शांतिकेलिये हों।
भावार्थ:-जबतक ममेदमिति (यह मेरा है ऐसे) मूछीलक्षण परिग्रहका संबंध आत्माके साथ रहता है तबतक किसीप्रकारकी विशुद्धता नहीं होती और जिससमय इस परिग्रहका संबंध छटजाता है उससमय विशुद्धिकी प्राप्ति होती है श्रीकुंथुनाथभगवानने समस्तप्रकारके परिग्रहका त्याग करदिया है इसलिये बाझमें तो समस्तप्राणियोंपर दयाकी विशुद्धि हुई तथा अंतरंगमें चैतन्यकी विशुद्धि हुई इसलिये ऐसे श्रीकुंथुनाथ भगवान मेरेसमान मनुष्योंको संसारकी शांतिकेलिये होवें ॥ १७ ॥
अरनाथतीर्थकरकी स्तुति । विभांति यस्यांघ्रिनखा नमत्सुरस्फुरच्छिरोरत्रमहोऽधिकप्रभः जगद्गृहे पापतमोविनाशना इव प्रदीपाः स जिनो जयत्यरः॥
000000000000000000000000.........................
hiya
For Private And Personal