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पचनन्दिपश्चविंशतिका । सदा खाँमें देवतालोग गाया करते हैं इसलिये ऐसा मालूम होता है कि उसीके सुननेकेलिये मृग चंद्रमामें जाकर लीन हो गया।
भावार्थ:-संसारमें यह किंवदन्ती भलीभांति प्रसिद्ध है कि चंद्रमाके हिरणका चिह्न है इसीलिये उसका नाम मृगांक है (अर्थात् चंद्रमामें हिरण रहता है) अतः आचार्यवर उत्प्रेक्षा करते हैं कि इस भूमंडलको छोड़कर जो चंद्रमामें जाकर हिरणने स्थिति की है उसका यही कारण है कि वह पास में वर्गमें गाना सुननेकेलिये गया है क्योंकि हे जिनेन्द्र इन्द्र तथा इन्द्राणीके कानोंको सुखके करनेवाले आपके यशको स्वर्गमें सदा देव गान किया करते हैं और हिरण गानेका अत्यंत प्रिय है यह प्रत्यक्षगोचर है ॥ ४५ ॥
अलियं कमले कमला कमकमले तुह जिणिंद सा वसई पहकिरणणिहेण घडति णयजणे से कडक्खछडा ॥
भळीक कमले कमला क्रमकमले तव जिनेन्द्र सा वसति
नखकिरणनिभेन घटते नतजने तस्याः कटाक्षपछटाः ॥ अर्थ:-हे प्रभो हे जिनेश लक्ष्मी कमलमें रहती है यह बात सर्वथा असत्य है क्योंकि वह लक्ष्मी आपके चरणकमलोंमें रहती है क्योंकि जो भव्यजीव आपको शिरझुकाकर नमस्कार करते हैं उन भव्यजीवोंके ऊपर नखोंकी किरणों के बहानेसे उस लक्ष्मीका कटाक्षपात प्रतीत होता है।
भावार्थः-ग्रंथकार उत्प्रेक्षा करते हैं कि हे भगवन् आपकी जो नखोंकी किरणे हैं वे नखोंकी किरण नहीं किंतु आपके चरणों में विराजमान जो लक्ष्मी (शोभा) है उसके कटाक्षपात हैं क्योंकि जो पुरुष भक्ति | पूर्वक आपके चरणकमलोंको नमस्कार करते हैं उनके ऊपर मुग्ध होकर लक्ष्मी कटाक्षपात करती है अर्थात्
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॥३७८॥
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