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पचनन्दिपश्चविंशतिका । है और मुजा लंबी २ हाईयां है और पेट मल मूत्रका पिटारा है और जघन बहती हुई विष्टाके घरहैं और चरण शृड़ीके समानहै इसलिये ऐसे अपवित्र स्त्रीके शरीरमें उत्तमपुरुषोंको कदापि मोहं महीं करना चाहिये॥१५॥
और भी आचार्यवर स्त्रीकी अपवित्रताको दिखाते हैंकार्याकाविचारशून्यमनसो लोकस्य किं ब्रूमहे यो रागांधतयादरेण वनितावक्रास्यलालां पिवेत् । श्लाघ्यास्ते कवयः शशांकवादिति प्रव्यक्तवाग्डंवरैश्चर्मानद्धकपालमेतदपि यैरग्रे सतां वर्ण्यते ॥ १६ ॥
अर्थः--रागसे अंधाहोकर जो लोक बड़े आदरसे स्त्रीके मुखकी लारका पान करता है ग्रंथकार कहते हैं कि कार्य तथा अकार्यके विचारसे रहित है मन जिसका ऐसे उसलोकके विषयमें हम क्या कहे ? और वे कविभी सराहना करने योग्य है कि जो कवि सज्जनोंके सामने चामसे ढकाहुवा है कपाल जिसका ऐसेभी स्त्रीके मुखको, अपने प्रबलबाणीके आडंबरसे चंद्रमाके समान कहते हैं।
भावार्थ-विनाही उपदेशके समस्तजीव स्त्रीके सेवकवनेहवे हैं और रातदिन बड़े आदरसे उनकी । लारका पान करते है किन्तु कविलोग चामसे ढकेहुए भी स्त्रीके मुखको चंद्रमाकी उपमा देकर और उनको चंद्रवदनी कहकर और भी जीवोंको भ्रांत करते हैं यह बड़ीभारी भूल है इसलिये ऐसी निकृष्ट तथा अपवित्र स्त्रीकी प्रशंसा करनेवाले वे कवि कुकवि हैं ऐसा समझना चाहिये ॥ १६ ॥
__ आचार्यवर कवियोंकी निंदा करते हैंएष स्त्रीविषये विनापि हि परप्रोक्तोपदेशं भृशं रागांधो मदनोदयादनुचितं किं किं न कुर्याजनः । अप्पेतत्परमार्थबोधविकलः प्रौढं करोति स्फुरच्छंगारं प्रविधाय काव्यमसकृल्लोकस्य कश्चित्कविः ॥१७॥
अर्थः-रागसे अंष यह लोक परके दियेहुवे उपदेशके बिनाही कामके उदयसे अर्थात् कामीहोकर क्या
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B४॥
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