________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailashsagarsuri Gyanmandir
॥३४३॥
पंचनाम्दपंचविंशतिका । देनेवाला नहीं जिसप्रकार सड़े हुवे अनेक मुर्दीसे व्याप्त श्मसानभूमिको प्राप्त होकर काले काकोंका समूहही संतुष्ट होताहै राजहंसोंका समूह संतुष्ट नहीं होता ।
भावार्थ:-जिसप्रकार सड़ेहुवे मुर्दीसे व्याप्त श्मसानभूमिको प्राप्त होकर कौवा संतुष्ट होता है और राजहंस संतुष्ट नहीं होता उसीप्रकार यद्यपि स्त्रीका शरीर उत्तम यौवन तथा लावण्यकर सहितभी है और नानाप्रकारके भूषणोंसे भी साहित है तोभी उसको मूर्खलोगही हर्षका करनेवाला मानते है विद्वानलोग हर्षका करनेवाला कदापि नहीं मानते ॥ १४॥
स्त्रीका शरीर अपवित्र है इसलिये विद्वानलोग उसमें राग नहीं करते इसबातको आचार्यवर दिखाते हैं। यूकाधाम कचाः कपालमैजिनाच्छन्नं मुखं योषितां तच्छिद्रे नयने कुचौ पलभरौ वाहूतते कीकसे । तुंदं मूत्रमलादिसा जघनं प्रस्पन्दिवर्चीगृहं पादस्थूणमिदं किमत्र महतां रागाय संभाव्यते ॥१५॥
अर्थ:--खियोंके वालतो जूवाओंके स्थान हैं और मुख तथा कपाल चामकर वेष्टित हैं और दोनों नेत्र उसके छेद है तथा स्तन मांससे मेरे हुवे है और दोनों मुजा विस्तृत हड्डियां है और स्त्रियों का पेट मूत्र तथा| मलका घर है और जघन वहती हुई विष्टाके घर हैं और स्त्रियोंके चरण स्थूणके समान है इसलिये नहीं मालूम सजनोंको स्त्रियोंकी कोनसी चीज रागकेलिये होती है।
भावार्थः-यदि स्त्रीकी कोई भी चीज पवित्र तथा सुंदर होती तो स्त्रीमें विद्वान पुरुषोंके रागकी संभावना हो सक्ती थी किंतु स्त्रीकी तो कोई चीज पवित्र तथा सुंदर नहीं क्योंकि उनके वालोंमें तो असंख्याते जवां लीख आदि जीव भरे हवे हैं और मुख तथा कपाल चर्मकर वेष्ठित हैं तथा दोनों नेत्र छिद्र है और स्तन मांसके पिंड
१. पुस्तकमें अधिनाच्छादि यहमी पाठ है।
00000000066666666666666001
३
॥
For Private And Personal