________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailashsagarsuri Gyanmandir
܀܀܀܀܀܀܀܀܀܀܀܀܀܀܀܀܀܀܀܀܀܀܀܀܀܀܀܀܀܀܀܀܀܀܀܀܀܀܀܀܀܀܀܀܀܀܀܀܀܀܀܀܀܀܀ ܀
पद्मनन्दिपश्चविंशतिका । ऋषभदेवकी पारणाके समय वह तीनलोकके आश्चर्यकरनेवाली रत्नोंकी वर्षा होती हुई कि जिस वर्षासे यह पृथ्वी साक्षात् वसुमती नामको धारण करती हुई।
भावार्थ:-वसुका अर्थ द्रव्य होता है तथा जो वसुको धारण करनेवाली होवे उसको वसुमती कहते हैं सो पहिले तो इस पृथ्वीका नाम नाममात्र वसुमती था परन्तु श्रेयांस राजाके घरमें श्री-ऋषभदेवकी पारणाके समयसे साक्षात् इसका नाम वसुमती हुआ है ऐसे अनुपम पुण्यसहित श्रीश्रेयांस राजा सदा जयवंत रहो ॥३॥
॥ अब आचार्य दानके उपदेशकी इच्छा करते हुए कहते हैं ॥ ३ ॥ प्राप्तेऽपि दुर्लभतरेऽपि मनुष्यभावे स्वप्नेन्द्रजालसदृशेऽपि हि जीवितादौ ॥ । ये लोभकृपकुहरे पतिताः प्रवक्ष्ये कारुण्यतः खलु तद्द्धरणाय किञ्चित् ॥ ४ ॥ अर्थः-अत्यंत दुर्लभ मनुष्य जन्मको पाकर तथा खप्न के समान और इन्द्र जाल के समान जीवन यौवन आदि के होने पर भी जो मनुष्य लोभरूपी कूवमें गिरे हुवे हैं उनके उद्धार के लिये आचार्य कहते हैं कि मैं दयाभावसे कुछ कहूंगा ॥ ४ ॥
अब आचार्य दानका उपदेश देते हैं।
. बसंततिलका । कान्तात्मजद्रविगमुख्यपदार्थसार्थयोत्थातियोरघनमोहमहासमुद्रे।
पोतायते गृहिणि सर्वगुणाधिकत्वादानं परं परमसात्विकभावयुक्तम् ॥ ५॥ अर्थः-स्त्री पुत्र धन आदिक जो मुख्य पदार्थों का समूह उससे उठाहुवा जो अत्यंत घोर तथा प्रचुर मोह उसके विशालसमुद्रस्वरूप इगृहस्थाश्रमसे पार होनेके लिये परम सात्विकभावसे दिया हुवा तथा सर्वगुणोंमें अधिक ऐसा उत्कृष्ट दानही जहाज स्वरूप है।
܀܀܀܀܀܀܀܀܀܀܀܀܀܀܀ ܀ ܀ ܀ ܀ ܀܀܀܀܀܀܀܀܀܀܀ ܀ ܀ ܀ ܀ ܀ ܀ ܀ ܀ ܀ ܀ ܀ ܀ ܀ ܀ ܀ ܀ ܀܀܀܀܀܀܀܀܀܀܀
का॥११३॥
For Private And Personal