________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kcbatirth.org
Acharya Shri Kailashsagarsuri Gyanmandir
124
464
0000000000000000000000000000000000000000000000000001
पचनन्दिपश्चविंशतिका । बुद्धि संसारके भ्रमणसे अत्यंत भयभीत है और जो तपकी भूमिका को प्राप्त होगये हैं उनमुनियोंको चाहिये कि वे समस्तप्रकारकी स्त्रियों के त्यागमें बड़ा प्रयल करें ॥ ६ ॥ . औरभी आचर्यवर स्त्रीके त्यागकी दृढ़ता को बतलाते हैंमुक्त रि दृढागला भवतरोः सेकेंगंना सारिणी मोहव्याधविनिर्मिता नरमृगस्याबंधने वागुरा । यत्संगेन सतामपि प्रसरति प्राणादिपातादि तत्तद्धार्तापि यतेतित्वहतये कुर्यान्न किं सा पुनः ॥७॥
अर्थः-यहस्त्री मुक्तिके द्वारके रोकनेकेलिये मजबूत अर्गला है और संसाररुपीवृक्षके सींचनेकेलिये नाली है तथा मनुष्यरूपी मृगोंके वांधनेकेलिये मोहरूपीव्याधद्वारा बनाया हुवा जाल है क्योंकि जिस सीके संगसे सज्जनोंका भी जीवन नष्ट होजाता है और जिसस्त्रीकी बातभी मुनियोंके मुनिपनेके नाशके लिये होती है वह स्त्री संसारमें और क्या २ नहीं करसक्ती ? अर्थात् समस्तप्रकारके अनिष्टोंको करसक्ती है ॥
भावार्थ:-स्त्रीको अर्गलाकी उपमा इसलिये दी गई है कि जिससमय किवाड़ लगाकर अगला लगादी जाती है उससमय जिसप्रकार उसदरवाजे के भीतर कोईभी प्रवेश नहीं करसकता उसीप्रकार जो मनुष्य स्त्रीके लोलपी हैं अर्थात् स्त्रीके फंदेमें फसे हुवे हैं उनको मोक्षकी प्राप्ति कदापि नहीं होसकती । और स्त्रीको नाली की उपमा इसलिये दी गई है कि जिसप्रकार नालीद्वारा सींचनेसे वृक्ष दिन प्रतिदिन बढ़ता चलाजाता है उसीप्रकार स्त्रीलपटियोंकेलिये संसारभी बढ़ता चलाजाता है अर्थात् उनको निरंतर संसारमें भ्रमण करना पड़ता है और स्त्रीको जालकी उपमा इसलिये दी गई है कि जिसप्रकार जालमें फसकर जीव दुःख पाते हैं उसी प्रकार स्त्रीमें आसक्त होनेसे जीवोंको मानाप्रकारके दुःखोंका सामना करना पड़ता है इसलिये ऐसी स्त्री संसारमें समस्त अनिष्टोंके करनेवाली है क्योंकि जिस स्त्रीके संगसे सज्जनोंका भी जीवन नष्ट होजाता है तथा
100000000
For Private And Personal