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H२०१॥
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पचनन्दिपश्चविंशतिका । देशव्रतानुसारेण संयमोऽपि निषेव्यते
गृहस्थैर्येन तेनैव जायते फलवदुव्रतम् ॥२२॥ अर्थः-धर्मात्माश्रावकोंको एकदेशव्रतके अनुसार संयम भी अवश्य पालना चाहिये जिससे उनका कियाहुआ व्रत फलीभूत होवे ।
भावार्थः--जीवोंकी रक्षाकरना और मन तथा इन्द्रियोंको वशमें रखना इसकानाम संयम है जबतक यह संयम न किया जावेगा तबतक व्रत कदापि फलीभूत नहीं होसक्ते इसलिये आचार्य उपदेश देते हैं कि एकदेशव्रतके अनुसार श्रावकोंको संयम अवश्य पालना चाहिये जिससे उनका व्रत फलका देनेवाला होवे ॥२२॥
त्याज्यं मांसंच मद्यंच मधूदुम्बरपञ्चकम्
अष्टौ मूलगुणा-प्रोक्ता गृहिणो दृष्टिपूर्वकाः ॥२३॥ अर्थः-श्रावकोंको मद्य मास मधुका तथा पांच उदुम्बरोंका अवश्य त्याग कर देना चाहिये और सम्यग्दर्शनपूर्वक इन आठोंका त्यागही गृहस्थोंके आठ मूलगुण हैं ॥ २३ ॥
अणुव्रतानि पञ्चैव त्रि-प्रकारं गुणव्रतम्
शिक्षाब्रतानि चत्वारि द्वादशेति गृहिव्रते ॥२४॥ अर्थ:--पांच प्रकारके अणुव्रत तथा तीनप्रकारके गुणव्रत और चारप्रकारके शिक्षाबत ये बारह व्रत गृहस्थोंके हैं।
भावार्थ:-अहिंसाअणुवत सत्य अणुवप्त अचौर्यअणुव्रत ब्रह्मचर्यअणुवत तथा परिग्रहपरियाणनामकअणुव्रत ये पांच अणुव्रत, और दिग्वत देशव्रत तथा अनर्दडव्रत ये तीन गुणव्रत, तथा देशावकाशिक सामायिक प्रोषधोपवास वैयावृत्य ये चार शिक्षाबत, इसप्रकार इन बारहवतोंको गृहस्थ पालते हैं ॥ २४॥
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