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[मूलाचारे
कार्येदियगुणमग्गणकुलाउजोणीसु सव्वजीवाणं ।
णाऊण य ठाणादिसु हिंसादिविवज्जणहिंसा ॥५॥ काय-काया: पृथिव्यप्तेजोवायुवनस्पतित्रसा: तात्स्थ्यात साहचर्याद्वा पृथिवीकायिकादयः काया इत्युच्यन्ते, आधारनिर्देशो वा, एवमन्यत्रापि योज्यम् । इंदिय--इन्द्रियाणि पंच स्पर्शनरसनघ्राणचक्षुःश्रोत्राणि । एक स्पर्शनमिन्द्रियं येषां ते एकेन्द्रियाः। द्वे स्पर्शनरसने इन्द्रिये येषां ते द्वीन्द्रियाः। त्रीणि स्पर्शनरसनघ्राणानीन्द्रियाणि येषां ते त्रीन्द्रियाः। चत्वारि स्पर्शनरसनघ्राणचक्षंषीन्द्रियाणि येषां ते चतुरिन्द्रियाः । पंच स्पर्शनरसनघ्राणचक्षःश्रोत्राणीन्द्रियाणि येषां ते पंचेन्द्रियाः। गण-गुणस्थानानि मिथ्यावृष्टिः, सासादनसम्यग्दृष्टिः, सम्यग्मिथ्यादृष्टिः, असंयतसम्यग्दृष्टिः, संयतासंयत., प्रमत्तसंयतः, अप्रमत्तसंयतः, अपूर्वकरणः उपशमकः क्षपकः, अनिवृत्तिकरणः उपशमकः क्षपकः, सूक्ष्मसाम्परायः उपशमकः क्षपकः, उपशान्तकषायः, क्षीणकषायः, सयोगकेवली, अयोगकेवली चेति चतुर्दशगुणस्थानानि । एतेषां स्वरूपं पर्याप्त्यधिकारे व्याख्यास्यामः, इति नेह प्रपंचः कृतः। मग्गण-मार्गणा यासू यकाभिर्वा जीवा मग्यन्ते ताश्चतुर्दश मार्गणाः, गतीन्द्रियकाययोगवेदकषायज्ञानसंयमदर्शनलेश्याभत्र्यसम्यक्त्वसंड्याहाराः एतासामपि स्वरूपं
गाथाथ-काय, इन्द्रिय, गुणस्थान, मार्गणा, कुल, आयु और योनि–इनमें सभी जीवों को जान करके कायोत्सर्ग (ठहरने) आदि में हिंसा आदि का त्याग करना अहिंसा महाव्रत है ॥५॥
प्राचारवृत्ति-पृथ्वी, जल, अग्नि, वाय, वनस्पति और बस ये काय हैं, क्योंकि पृथ्वीकायिक, जलकायिक आदि जीव इन कायों में रहते हैं अथवा वे इन कायों के साथ
इसलिए ये जीव ही यहाँ काय शब्द से कहे जाते हैं। अथवा यहाँ काय शब्द से जीवों के आधार का कथन किया गया है ऐसा समझना और इसी प्रकार से अन्यत्र भी लगा लेना चाहिए।
स्पर्शन, रसना, घ्राण, चक्षु और श्रोत्र ये पाँच इन्द्रियाँ हैं। एक स्पर्शनेन्द्रिय जिनके है वे जीव एकेन्द्रिय कहलाते हैं। स्पर्शन और रसना, ये दो इन्द्रियाँ जिनके हैं वे द्वीन्द्रिय है। स्पर्शन, रसना और घ्राण ये तीन इन्द्रियाँ जिनके हैं वे त्रीन्द्रिय हैं। स्पर्शन, रसना, घ्राण और चक्षु ये चार इन्द्रियाँ जिनके हैं वे चतुरिन्द्रिय हैं तथा स्पर्शन, रसना, घ्राण, चक्षु और श्रोत्र ये पाँचों इन्द्रियाँ जिनके हैं वे पंचेन्द्रिय जीव कहलाते हैं।
गुण शब्द से गुणस्थान का ग्रहण होता है। ये गुणस्थान मिथ्यादृष्टि, सासादनसम्यग्दृष्टि, सम्यग्मिथ्यादृष्टि, असंयतसम्यग्दृष्टि, संयतासंयत, प्रमत्तसंयत, अप्रमत्तसंयत, अपूर्वकरण में उपशम श्रेणी चढ़ने वाले उपशमक और क्षपकश्रेणी चढ़ने वाले क्षपक, अनिवत्तिकरण में उपशमक और क्षपक, सक्ष्म साम्पराय में उपशमक और क्षपक, उपशान्तकषाय, क्षीणकषाय, सयोगकेवली और अयोगकेवली-इस प्रकार से चौदह होते हैं। इनका स्वरूप आगे पर्याप्ति नामक अधिकार में कहेंगे, इसलिए यहाँ पर इनका विस्तार नहीं किया है।
जिनमें अथवा जिनके द्वारा जीव खोजे जाते हैं उन्हें मार्गणा कहते हैं । उनके चौदह
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