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सामाचाराचिकारः]
[१५३ तस्मात्तेन परगणस्थेन यत्तस्याचार्यस्यानुमतं तत्कर्तव्यं सर्वया प्रकारेणेत्यतः आह
किंबहुणा भणि देण दु जा इच्छा गणधरस्स सा सव्वा ।
कादवा तेण भवे एसेव विधी दु सेसाणं ॥१८६॥ किंवहुणा—कि बहुना। भणिदेण दु-भणितेन तु किं बहुनोक्तेन । जा इच्छा-येच्छा योभिप्रायः । गणधरस्स-गणधरस्याचार्यस्य । सा सवा-सर्वव सा कादव्या वर्तव्या। तेण-पादोष्णेन । भवे-भवेत। कि परगणस्थेनैव कर्तव्या नेत्याह । एसेव विधीदु सेसाणं-एष एव इत्थंभूत एव विधिरनुष्ठानं शेषाणां स्वगणस्थानामेकाकिनां समुदायव्यवस्थितानां च । किं बहुनोक्तेन येच्छा गणधरस्य सा सर्वा कर्तव्या भवेत् न केवलमस्य शेषाणामप्येष एव विधिरिति ॥१८६॥
यदि यतीनामयं न्याय आर्यिकाणां क इत्यत आह
एसो अज्जाणंपि अ सामाचारो जहक्खियो पुव्वं ।
सव्वह्मि अहोरत्ते विभासिदश्वो जधाजोग्गं ॥१८७॥
एसो-एषः । अज्जाणंविय-आर्याणामपि च । सामाचारो-सामाचारः। जहक्खिओ-यथाख्यातो यथा प्रतिपादितः। पुव्वं--पूर्वस्मिन् । सव्वम्मि-सर्वस्मिन् । अहोरत्ते-रात्री दिवसे च । विभासिवयो-विभाषयितव्यः प्रकटयितव्यो विभावयितव्यो वा । जहाजोग्गं यथायोग्यं आत्मानुरूपो वृक्षमूला
इसलिए उस परगण में स्थित मुनि को, उन आचार्य को जो इष्ट है सभी प्रकार से वही करना चाहिए, इसी बात को कहते हैं
गाथार्थ अधिक कहने से क्या, गणधर की जो भी इच्छा हो वह सभी उसे करनी होती है। यही विधि शेष मुनियों के लिए भी है ॥१८६॥
. प्राचारवृत्ति-बहुत कहने से क्या, उस संघ के आचार्य का जो भी अभिप्राय है उसी के अनुसार आगन्तुक मुनि को उनकी सभी प्रकार की आज्ञा पालन करना चाहिए।
___ क्या परगण में स्थित वह आगन्तुक मुनि ही सभी आज्ञा पाले ? नहीं, ऐसी बात नहीं है, किन्तु अपने संघ में एक मुनि अथवा समूह रूप सभी मुनियों के लिए भी यही विधि है अर्थात् संघस्थ सभी मुनि आचार्य की सम्पूर्णतया अनुकूलता रखें ऐसा आदेश है।
__ यदि मुनियों के लिए ऐसा न्याय है तो आर्यिकाओं के लिए क्या आदेश है ? ऐसा प्रश्न होने पर उत्तर देते हैं
गाथार्थ-पूर्व में जैसा कहा गया है वैसा ही यह समाचार आयिकाओं को भी सम्पूर्ण अहोरात्र में यथायोग्य करना चाहिए ॥१८७॥
आचारवृत्ति-पूर्व में जैसा समाचार प्रतिपादित किया है, आर्यिकाओं को भी सम्पूर्ण काल रूप दिन और रात्रि में यथायोग्य-अपने अनुरूप अर्थात् वृक्षमूल, आतापन आदि योगों से रहित वही सम्पूर्ण समाचार विधि आचरित करनी चाहिए।
भावार्थ-इस गाथा से यह स्पष्ट हो जाता है कि आर्यिकाओं के लिए वे ही अट्ठाईस मूलगुण और वे ही प्रत्याख्यान, संस्तर ग्रहण आदि तथा वे ही औधिक पदविभागिक समाचार
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