Book Title: Mulachar Purvardha
Author(s): Vattkeracharya, Gyanmati Mataji
Publisher: Bharatiya Gyanpith

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Page 527
________________ state ofधकारः ] एसो पच्चक्खा पच्चक्खाणेति वच्चदे चाश्रो । पच्चक्खिदव्वमुर्वाह आहारो चेव बोधव्वो ।। ६३७॥ एष प्रत्याख्यायकः पूर्वेण सम्बन्धः प्रत्याख्यानमित्युच्यते । त्यागः सावद्यस्य द्रव्यस्य निरवद्यस्य वा तपोनिमित्त परित्यागः प्रत्याख्यानं प्रत्याख्यातव्यः परित्यजनीय उपधिः परिग्रहः सचित्ताचित्तमिश्रभेदभिन्नः क्रोधादिभेदभिन्नश्वाहारश्चाभक्ष्यभोज्यादिभेदभिन्नो बोद्धव्य इति । । ६३७ ॥ प्रस्तुतं प्रत्याख्यानं प्रपंचयन्नाह--- पच्चक्खाणं उत्तरगुणेसु खमणादि होदि णेयविहं । वि एत्थ पदं तंपि य इणमो दसविहं तु ॥ ६३८ ॥ प्रत्याख्यानं मूलगुणविषयमुत्तरगुणविषयं वक्ष्यमाणादिभेदेनाशनपरित्यागादिभेदेनानेकविधमनेकप्रकारं । तेनापि चात्र प्रकृतं प्रस्तुतं अथ वा तेन प्रत्याख्यायकेनात्र यत्नः कर्त्तव्यस्तदेतदपि च दशविधं तदपि चैतत् क्षमणादि दशप्रकारं भवतीति वेदितव्यम् ॥ ६३८ ॥ तान् दशभेदान् प्रतिपादयन्नाह - [४६ प्रणादमदिकंतं कोडीसहिदं णिखंडिदं चेव । सागारमणागारं परिमाणगदं अपरिसेसं ॥४ ॥६३॥ श्रद्धाणगदं णवमं दसमं तु सहेदुगं वियाणाहि । पच्चक्खाणवियप्पा णिरुत्तिजुत्ता जिणमदति ॥ ६४० ॥ गाथार्थ - यह पूर्वोक्त गाथा कथित साधु प्रत्याख्यायक है । त्याग को प्रत्याख्यान कहते और उपधि तथा आहार यह प्रत्याख्यान करने योग्य पदार्थ हैं ऐसा जानना ॥ ६३७|| प्राचारवृत्ति - पूर्व गाथा में कहा गया साधु प्रत्याख्यायक है । सावद्यद्रव्य का त्याग करना या तपोनिमित्त निर्दोष द्रव्य का त्याग करना प्रत्याख्यान है । सचित्त, अचित्त तथा मिश्र रूप बाह्य परिग्रह एवं क्रोध आदि रूप अभ्यन्तर परिग्रह ये उपधि हैं। अभक्ष्य भोज्य आदि पदार्थ आहार कहलाते हैं । ये उपधि और आहार प्रत्याख्यातव्य हैं । Jain Education International प्रस्तुत प्रत्याख्यान का विस्तार से वर्णन करते हैं गाथार्थ - उत्तर गुणों में जो अनेक प्रकार के उपवास आदि हैं वे प्रत्याख्यान हैं । उसमें प्रत्याख्यायक प्रयत्न करे सो यह प्रत्याख्यान दश प्रकार का भी है ।। ६३८ ॥ आचारवृत्ति - मूलगुण विषयक प्रत्याख्यान और उत्तरगुण विषयक प्रत्याख्यान होता है जोकि आगे कहे जाने वाले भोजन के परित्याग आदि के भेद से अनेक प्रकार का है । उन भेदों से भी यहाँ पर प्रकृत है - कहा गया है अथवा उस प्रत्याख्यायक साधु के इन त्याग रूप उपवास आदिकों में प्रयत्न करना चाहिए । सो यह भी उपवास आदि रूप प्रत्याख्यान दश प्रकार का है ऐसा जानना । उन दश भेदों का प्रतिपादन करते हैं गाथार्थ - अनागत, अतिक्रान्त, कोटिसहित, निखंडित, साकार, अनाकार, परिणाम For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org


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