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दोषोऽतीतकालविषयातीचारशोधनं प्रतिक्रमणमतीतभविष्यद्वर्त्तमानकालविषयातिचारनिर्हरणं प्रत्याख्यानमथवा व्रताद्यतीचारशोधनं प्रतिक्रमणमतीचा र कारणसचित्ताचित्तमिश्र द्रव्यविनिवृत्तिस्तपोनिमित्त प्राक द्रव्यस्य च निवृत्तिः प्रत्याख्यानं यस्मादिति ॥ ६३४॥
प्रत्याख्यायक प्रत्याख्यान प्रत्याख्यातव्यस्वरूप प्रतिपादनार्थमाह
पच्चक्खा पच्चक्खाणं पच्चक्खियव्वमेवं तु । तीदे पच्चुप्पण्णे अणागदे चेव काल || ६३५॥
प्रत्याख्यायको जीवः संयमोपेतः प्रत्याख्यानं परित्यागपरिणामः प्रत्याख्यातव्यं द्रव्यं सचित्ताविसमिश्रकं सावद्यं निरवद्यं वा । एवं त्रिप्रकारं प्रत्याख्यानस्वरूपोऽत्यथाऽनुपपत्तेरिति । तत्त्रिविधमप्यतीते काले प्रत्युत्पन्ने कालेऽनागते च काले भूतभविष्यद्वर्त्तमानकालेष्वपि ज्ञातव्यमिति ।। ६३५||
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तथा वर्तमान इन तीनों कालविषयक अतीचारों का निरसन करना प्रत्याख्यान है । अथवा व्रत आदि के अतीचारों का शोधन प्रतिक्रमण है तथा अतीचार के लिए कारणभूत ऐसे सचित्त, अचित्त एवं मिश्र द्रव्यों का त्याग करना तथा तप के लिए प्रासुकद्रव्य का भी त्याग करना प्रत्याख्यान है ।
भावार्थ- समता, स्तव, वन्दना और प्रतिक्रमण इनमें जो निक्षेप घटित किए हैं वहाँ पर पहले चरणानुयोग की पद्धति से द्रव्य आदि निक्षेपों को कहकर पुन: ' अथवा ' कहकर सैद्धांतिक विधि से छहों निक्षेप बताये हैं । किन्तु यहाँ पर टीकाकार ने दोनों प्रकार के निक्षेपों को साथ - साथ ही घटित कर दिया है ऐसा समझना । एवं छहों निक्षेपों का चरणानुयोग की विधि से जो कथन है उसमें प्रत्येक में कृत, कारित, अनुमोदना को लगा लेना चाहिए । प्रत्याख्यायक, प्रत्याख्यान और प्रत्याख्यातव्य इन तीनों का स्वरूप प्रतिपादित करने के लिए कहते
गाथार्थ-प्रत्याख्यायक, प्रत्याख्यान और प्रत्याख्यातव्य ये तीनों ही भूत, वर्तमान और भविष्यत्काल में होते हैं ।। ६३५॥
श्राचारवृत्ति - संयम से युक्त जीव- - मुनि प्रत्याख्यायक हैं, अर्थात् प्रत्याख्यान करनेवाले हैं । त्यागरूप परिणाम प्रत्याख्यान है । सावद्य हों या निरवद्य, सचित्त, अचित्त तथा मिश्र ये तीन प्रकार के द्रव्य प्रत्याख्यातव्य हैं अर्थात् प्रत्याख्यान के योग्य हैं। इन तीन प्रकार से प्रत्याख्यान के स्वरूप की अन्यथानुपपत्ति है अर्थात् इन प्रत्याख्यायक आदि तीन प्रकार के सिवाय प्रत्याख्यान का कोई स्वरूप नहीं है । ये तीनों ही भूतकाल, वर्तमानकाल और भविष्यत् की अपेक्षा से तीन-तीन भेदरूप हो जाते हैं । अर्थात् भूतप्रत्याख्यायक, वर्तमान प्रत्याख्यायक और भविष्यत् प्रत्याख्यायक । भूत प्रत्याख्यान, वर्तमान प्रत्याख्यान और भविष्यत् प्रत्याख्यान । भूतप्रत्याख्यातव्य, वर्तमान प्रत्याख्यातव्य और भविष्यत् प्रत्याख्यातव्य ।
भावार्थ- प्रत्याख्यान का अर्थ है त्याग । सो त्याग करनेवाला जीव, त्याग और त्यागने योग्य वस्तु - मूल में इन तीनों को कहा है। पुनः प्रत्याख्यान त्रैकालिक होने से तीनों को भी कालिक किया है ।
१ क त्रिप्रकार एवं
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