Book Title: Mulachar Purvardha
Author(s): Vattkeracharya, Gyanmati Mataji
Publisher: Bharatiya Gyanpith

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Page 546
________________ [मूलाचारे कायोत्सर्गेण स्थितो दिशामालोकनं वर्जयेत्, तथा कायोत्सर्गेण स्थितो ग्रीवोन्नमनं वर्जयेन् तथा कायोत्सर्गेण स्थितः सन् प्रणमनं च वर्जयेत्, तथा कायोत्सर्गेण स्थितो निष्ठीवनं षाकरणं च वर्जयेत् तथा कायोत्सर्गेण स्थितोंऽगामर्श शरीरपरामर्श वर्जयेदेतेऽपि दोषाः सन्त्यतो वर्जनीयाः । दशानां दिशामवलोकनानि दश दोषाः, शेषा एकैका इति ॥६७२ ॥ यथा यथोक्तं कायोत्सर्ग' कुर्वन्ति तथाह- ४८८ ] xt निःकूटं मायाप्रपंचान्निर्गतं, सह विशेषेण वर्त्तत इति सविशेषस्तं सविशेषं विशेषतासमन्वितं बलानुरूपं स्वशक्त्यनुरूपं, वयोऽनुरूपं, बालयौवनवार्द्ध क्यानुरूपं तथा वीर्यानुरूपं कालानुरूपं च कायोत्सर्ग धीरा दुःखक्षयार्थं कुर्वन्ति तिष्ठन्तीति ॥६७३ ॥ मायां प्रदर्शयन्नाह - वारुणीपायी दोष होता है । १९ से २८. दिशा अवलोकन - कायोत्सर्ग से स्थित हुए दिशाओं का अवलोकन करना । पूर्व, पश्चिम, दक्षिण, उत्तर, आग्नेय, नैऋत्य, वायव्य, ईशान, ऊर्ध्व और अधः । इन दश दिशाओं के निमित्त से दश दोष हो जाते हैं । ये दिशावलोकन दोष हैं । २६. ग्रीवोन्नमन - कायोत्सर्ग में स्थित होकर गरदन को अधिक ऊंची करना यह ग्रीवा उन्नमन दोष है । णिक्कूडं सविसेसं बलाणरूवं वयाणुरूवं च । कासगं धीरा करंति दुक्खक्खयट्ठाए || ६७३ ॥ ३०. प्रणमन - कायोत्सर्ग में स्थित हुए गरदन को अधिक झुकाना या प्रणाम करना यह प्रणमन दोष है । ३१. निष्ठीवन - कायोत्सर्ग में स्थित होकर खखारना, थूकना यह निष्ठीवन दोष है । दोष है । ३२. अंगामर्श - कायोत्सर्ग में स्थित हुए शरीर का स्पर्श करना यह अंगामर्श कायोत्सर्ग करते समय इन बत्तीस दोषों का परिहार करना चाहिए। जिन-जिन विशेषताओं से यथोक्त कायोत्सर्ग को करते हैं उन्हें ही बताते हैंगाथार्थ - धीर मुनि मायाचार रहित, विशेष सहित, बल के अनुरूप और उम्र के अनुरूप कायोत्सर्ग को दुःखों के क्षय हेतु करते हैं ।। ६७३ ॥ आचारवृत्ति-धीर मुनि दुःखों का क्षय करने के लिए माया प्रपंच से रहित, विशेषताओं से सहित, अपनी शक्ति के अनुरूप और अपनी बाल, युवा या वृद्धावस्था के अनुरूप तथा अपने वीर्यं के अनुरूप एवं काल के अनुरूप कायोत्सर्ग को करते हैं । माया को दिखलाते हैं। १ क करोति । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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