Book Title: Mulachar Purvardha
Author(s): Vattkeracharya, Gyanmati Mataji
Publisher: Bharatiya Gyanpith

View full book text
Previous | Next

Page 562
________________ ५०४] [मूलाचारे इति श्रीवट्टकेराचार्यवर्यप्रणीतमूलाचारस्य वसुनंद्याचार्यविरचितायाम् आचारवृत्तावावश्यकनियुक्तिनामकः सप्तमः परिच्छेदः ॥७॥ (पुनः तीन आवर्त एक शिरोनति करके वन्दना मुद्रा से हाथ जोड़कर "जयति भगवान् हेमांभोज " इत्यादि चैत्यभक्ति पढ़े ।) इस तरह इस कृतिकर्म में प्रतिज्ञा के अनन्तर तथा कायोत्सर्ग के अनन्तर ऐसे दो बार पंचांग नमस्कार करने से दो अवनति-प्रणाम हो जाते हैं। सामायिक स्तव के आदि-अन्त में तथा 'थोस्सामिस्तव' के आदि-अन्त में तीन-तीन आवर्त और एक-एक शिरोनति करने से बारह आवर्त और चार शिरोनति होती हैं। लघु भक्तियों के पाठ में कृतिकर्म में लघु सामायिकस्तव और थोस्सामिस्तव भी होता है । यथा __ अथ पौर्वाकिस्वाध्याय-प्रतिष्ठापन-क्रियायां श्रुतभक्तिकायोत्सर्ग करोम्यहं ।। (पूर्ववत् पंचांग नमस्कार करके, तीन आवर्त और एक शिरोनति करे । पुनः सामायिक दण्डक पढ़े ।) सामायिकस्तव–णमो अरंहताणं, णमोसिद्धाणं णमो आइरियाणं । ___णमो उवज्शायाणं णमो लोए सव्वसाहूणं ॥ चत्तारि मंगलं--अरहंत मंगलं, सिद्ध मंगलं, साहू मंगलं, केवलिपण्णत्तो धम्मो मंगलं । चत्तारि लोगुत्तमा–अरंहत लोगुत्तमा, सिद्ध लोगुत्तमा, साहूलोगुत्तमा, केवलिपण्णत्तो धम्मो लोगुत्तमा । चत्तारि सरणं पव्वज्जामि-अरहंत-सरणं पव्वज्जामि, सिद्धसरणं पव्वज्जामि, साहूसरणं पव्वज्जामि, केवलिपण्णत्तो धम्मो सरणं पव्वज्जामि । नाव अरहताणं भयवंताणं पज्जुवासं करेमि, ताव कालं पावकम्मं दुच्चरियं वोस्सरामि। (तीन आवर्त एक शिरोनति करके २७ उच्छ्वास में ६ वार णमोकार मन्त्र जपकर पुनः पंचांग नमस्कार करे । अनन्तर तीन आवर्त एक शिरोनति करके 'थोस्सामि' पढ़े।) पुनः तीन आवर्त एक शिरोनति करके 'श्रुतमपि जिनवरविहितं' इत्यादि लघु श्रुतभक्ति पढ़े। ऐसे ही सर्वत्र समझना चाहिए। यदि पुनः पुनः खड़े होकर क्रिया करने की शक्ति नहीं है तो बैठकर भी ये क्रियाएँ की जा सकती हैं। इस प्रकार से श्री वट्टकेर आचार्यवर्य प्रणीत मुलाचार की श्री वसुनन्दि आचार्य विरचित आचारवृत्ति नामक टीका में आवश्यक नियुक्ति-नामक सातवाँ परिच्छेद पूर्ण हुआ। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org.

Loading...

Page Navigation
1 ... 560 561 562 563 564 565 566 567 568 569 570 571 572 573 574 575 576 577 578 579 580