Book Title: Mulachar Purvardha
Author(s): Vattkeracharya, Gyanmati Mataji
Publisher: Bharatiya Gyanpith

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Page 549
________________ estarकाधिकारः ] धम्मं सुक्कं च दुवे कायदि भाणाणि जो ठिदो संतो । एसो कासग्गो इह उट्ठिदउट्ठिदो णाम ।। ६७६॥ धर्म्यध्यानं शुक्लध्यानं द्वे ध्याने यः कायोत्सर्गस्थितः सन् ध्यायति तस्यैष इह कायोत्सर्ग उत्थितोत्थितो नामेति ॥ ६७६ ॥ तथोत्थितनिविष्टुकायोत्सर्गस्य लक्षणमाह- अट्ट रुद्दं च दुवे भायदि भाणाणि जो ठिदो संतो । सो काग्गो उट्ठदणिविट्ठदो णाम ।। ६७७॥ आर्तध्यानं रौद्रध्यानं च द्वे ध्याने यः पर्यककायोत्सर्गेण स्थितो ध्यायति तस्यैष कायोत्सर्गे उत्थितनिविष्टनामेति ॥ ६७७॥ धम्मं सुक्कं च दवे भायदि भाणाणि जो णिसण्णो दु 1 एसो काग्गो उवविट्ठउट्ठिदो णाम ||६७८॥ धयं शौक्ल्यं च द्व े ध्याने यो निविष्टो ध्यायति तस्यैव कायोत्सर्ग इहागमे उपविष्टोत्थितो नामेति ॥ ६७८ ॥ उपविष्टोपविष्टकायोत्सर्गस्य लक्षणमाह [ ४e१ रुद्दं च दुवे भायदि भाणाणि जो णिसण्णो दु । एसो का प्रोग्गो सिण्णिदणिसण्णिदो णाम ।। ६७६ ॥ गाथार्थ -- जो ध्यान में खड़े हुए धर्म और शुक्ल इन दो ध्यान को करते हैं उनका यह उत्थितोत्थित नाम वाला है ॥६७६॥ आचारवृत्ति - गाथा सरल है । उत्थित निविष्ट कायोत्सर्ग कहते हैं गाथार्थ - जो कायोत्सर्ग में स्थित हुए आर्त और रौद्र इन दो ध्यान को ध्याते हैं उनका यह कायोत्सर्ग उत्थितनिविष्ट नाम वाला है ।। ६७७ ।। आचारवृत्ति- - गाथा सरल है । • उपविष्टोत्थित का लक्षण कहते हैं गाथार्थ ---जो बैठे हुए धर्म और शुक्ल इन दो ध्यानों को ध्याते हैं उनका यह कायोत्सर्ग उपविष्टोत्थित नाम वाला है || ६७८ ॥ श्राचारवृत्ति - गाथा सरल है । Jain Education International उपविष्टोपविष्ट कायोत्सर्ग का लक्षण करते हैं गाथार्थ - जो बैठे हुए ध्यान में आर्त और रौद्र का ध्यान करते हैं उनका यह कायोत्सर्ग उपविष्टोपविष्ट नामवाला है || ६७६ ॥ For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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