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षडावश्यकाधिकारः]
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श्रुतभक्ति होती है । देववन्दना में चैत्यभक्ति पंचगुरुभक्ति होती है। आचार्यवन्दना में लघ सिद्ध आचार्यभक्ति । यदि आचार्य सिद्धांतविद् हैं तो इनके मध्य लघु श्रुतभक्ति होती है। दैवसिक, रात्रिक प्रतिक्रमण में सिद्ध, प्रतिक्रमण, वीर और चतुर्विंशति तीर्थंकर ऐसी चार भक्ति हैं तथा रात्रियोग ग्रहण, मोचन में योग भक्ति होती है। आहार-ग्रहण के समय प्रत्याख्यान निष्ठापन में लघु सिद्धभक्ति तथा आहार के अनन्तर प्रत्याख्यान प्रतिष्ठापन में लघु सिद्धभक्ति होती है। पुनः आचार्य के समीप आकर लघु सिद्ध व योगभक्तिपूर्वक प्रत्याख्यान ग्रहण करके लघु आचार्य भक्ति द्वारा आचार्य वन्दना का विधान है ।
नैमित्तिक क्रिया में चतुर्दशी के दिन त्रिकालदेववन्दना में चैत्यभक्ति के अनन्तर श्रत भक्ति करके पंचगुरु भक्ति की जाती है अथवा सिद्ध, चैत्य, श्रुत, पंचगुरु और शान्ति ये पाँच भक्तियाँ हैं । अष्टमी को सिद्ध, श्रुत, सालोचना चारित्र व शान्ति भक्ति हैं। सिद्ध प्रतिमा की वन्दना में सिद्धभक्ति व जिन-प्रतिमा की वन्दना में सिद्ध, चारित्र, चैत्य, पंचगुरु व शान्ति भक्ति करे । पाक्षिक प्रतिक्रमण क्रियाकलाप व धर्मध्यानदीपक में प्रकाशित है तदनुसार पूर्ण विधि करे । वही प्रतिक्रमण चातुर्मासिक व सांवत्सरिक में भी पढ़ा जाता है। श्रुतपंचमी में बृहत् सिद्ध, श्रुतभक्ति से श्रुतस्कंध की स्थापना करके, बृहत् वाचना करके श्रुत, आचार्य भक्तिपूर्वक स्वाध्याय ग्रहण करके पश्चात् श्रुतभक्ति और शान्तिभक्ति करके स्वाध्याय समाप्त करे । नन्दीश्वरपर्व क्रिया में सिद्ध, नन्दीश्वर, पंचगुरु और शान्ति भक्ति करे तथा अभिषेक वन्दना में सिद्ध, चैत्य, पंचगुरु और शान्ति भक्ति पढ़े।
___ आषाढ़ शुक्ला त्रयोदशी के मध्याह्न में मंगलगोचर मध्याह्न देववन्दना करते समय, सिद्ध, चैत्य, पंचगुरु व शान्ति भक्ति करे । मंगलगोचर के प्रत्याख्यान ग्रहण में बृहत् सिद्ध भक्ति, योग भक्ति करके प्रत्याख्यान लेकर बृहत् आचार्य भक्ति से आचार्यवन्दना कर शान्ति भक्ति पढ़े। यही क्रिया कार्तिक कृष्णा त्रयोदशी को भी होती है। यह क्रिया वर्षा योग के ग्रहण के प्रारम्भ और अन्त में कही गई है । पुनः आषाढ़ शुक्ला चतुर्दशी के पूर्व रात्रि में वर्षा योग प्रतिष्ठापन क्रिया में सिद्धभक्ति, योगभक्ति करके लघु चैत्यभक्ति के द्वारा चारों दिशाओं में प्रदक्षिणा विधि करके, पंचगुरु भक्ति, शान्ति भक्ति करे। यही क्रिया कार्तिक कृष्णा चतुर्दशी की पिछली रात्रि में वर्षा योग निष्ठापना में होती है। पुनः वर्षा योग निष्ठापना के अनन्तर वीर निर्वाण वेला में सिद्ध, निर्वाण पंचगुरु और शान्ति भक्ति करे ।
जिनवर के पाँचों कल्याणकों मे क्रमशः गभ-जन्म में सिद्ध, चारित्र, शान्ति भक्ति हैं। तप कल्याण में सिद्ध, चारित्र, योग, शान्ति भक्ति तथा ज्ञानकल्याण में सिद्ध, चारित्र, योग, श्रुत और शान्ति भक्ति हैं। निर्वाणकल्याण में शान्ति भक्ति के पूर्व निर्वाणभक्ति और पढ़ना चाहिए। यदि प्रतिमायोगधारी योगी दीक्षा में छोटे भी हों तो भी उनकी वन्दना करनी चाहिए । उसमें सिद्ध, योग और शान्ति भक्ति करना चाहिए। के शलोंचके प्रारम्भ में लघु सिद्ध और योगि भक्ति करें। अनन्तर केशलोंच समाप्ति पर लघु सिद्धभक्ति करनी होती है।
सामान्य मुनि की समाधि होने पर उनके शरीर की क्रिया और निषद्या क्रिया में
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