Book Title: Mulachar Purvardha
Author(s): Vattkeracharya, Gyanmati Mataji
Publisher: Bharatiya Gyanpith

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Page 548
________________ ४० ] चतुःस्थानश्चतुर्विकल्प इति ॥ ६७५ || उक्तं च त्यागो देहममत्वस्य तनूत्सृतिरुदाहृता । उपविष्टोपविष्टादिविभेदेन चतुविधा ॥ १॥ आर्त्तरौद्रद्वयं यस्यामुपविष्टेन चिन्त्यते । उपविष्टोपविष्टाख्या कथ्यते सा तनूत्सृतिः ॥ २॥ 'धर्मशुक्लद्वयं यत्रोपविष्टेन विधीयते । तामुपविष्टोत्थ तांकां निगदंति महाधियः ॥३॥ आर्तरौद्रद्वयं यस्यामुत्थितेन विधीयते । तामुपविष्टोत्थितांकां निगवंति महाधियः ॥४॥ धर्मशुक्लद्वयं यस्यामुत्थितेन विधीयते । उत्थितोत्थित नाम्ना तामाभाषन्ते विपश्चितः ॥ ५ ॥ उत्थितोत्थित कायोत्सर्गस्य लक्षणमाह विष्टोत्थित है । तथा जो शरीर से भी बैठे हुए हैं और भावों से भी, उनका वह कायोत्सर्ग उपविष्टनिविष्ट कहलाता है । इस तरह कायोत्सर्ग के चार विकल्प हो जाते हैं । अन्यत्र कहा भी है श्लोकार्थ - देह से ममत्व का त्याग कायोत्सर्ग कहलाता है । उपविष्टोपविष्ट आदि के भेद से वह चार प्रकार का हो जाता है ॥ १ ॥ जिस कायोत्सर्ग में बैठे हुए मुनि आर्त और रौद्र इन दो ध्यानों का चिन्तवन करते हैं वह उपविष्टोपविष्ट कायोत्सर्ग कहलाता है ॥२॥ जिस कायोत्सर्ग में बैठे हुए मुनि धर्म और शुक्ल ध्यान का चिन्तवन करते हैं बुद्धिमान् लोग उसको उपविष्टोत्थित कहते हैं ॥३॥ जिस कायोत्सर्ग में खड़े हुए साधु आर्तरौद्र का चिन्तवन करते हैं उसको उत्थितोंपविष्ट कहते हैं ॥४॥ [मूलाचारे जिस कायोत्सर्ग में खड़े होकर मुनि धर्म ध्यान या शुक्ल ध्यान का चिन्तवन करते हैं विद्वान लोग उसको उत्थितोत्थित कायोत्सर्ग कहते हैं ||५|| उत्थितोत्थित कायोत्सर्ग का लक्षण कहते हैं १ क धर्म शुक्लद्वयं य स्यामुपविष्टेन चिन्त्यते । तामासीनोत्थितां लक्ष्मां निगदन्ति महाधियः ॥ २ क उपासकाचारे उक्तमास्ते । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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