Book Title: Mulachar Purvardha
Author(s): Vattkeracharya, Gyanmati Mataji
Publisher: Bharatiya Gyanpith

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Page 544
________________ ४८६] [मूलाचारे आलोगणं दिसाणं गीवाउण्णामणं पणमणं च । णिट्ठीवणंगमरिसो काउसग्गह्मि वज्जिज्जो ॥६७२॥ घोडय घोटकस्तुरगः स यथा एकं पादमुत्क्षिप्य विनम्य वा तिष्ठति तथा य: कायोत्सर्गेण तिष्ठति तस्य घोटकसदृशो घोटकदोषः, तथा लता इवांगानि चालयन्यः तिष्ठति कायोत्सर्गेण तस्य लतादोषः । स्तंभमाश्रित्य यस्तिष्ठति कायोत्सर्गेण तस्य स्तंभदोषः । स्तंभवत् शून्यहृदयो वा तत्साहचर्येण स एवोच्यते । तथा कूड़यमाश्रित्य कायोत्सर्गेण यस्तिष्ठति तस्य कूडयदोषः। साहचर्यादपलक्षणमात्रमेतदन्यदप्याश्रित्य न स्थातव्यमिति ज्ञापयति, तथा मालापीठाद्युपरि स्थानं अथवा मस्तकावं यत्तदाश्रित्य मस्तकस्योपरि यदि किंचिदत्र गतिस्तथापि यदि कायोत्सर्गः क्रियते स मालदोषः । तथा शवरवधरिव जंघाभ्यां जघनं निपीड्य कायोत्सर्गेण तिष्ठति तस्य शवरबधूदोषः, तथा निगडपीडित इव पादयोर्महदन्तरालं कृत्वा यस्तिष्ठति कायोत्सर्गेण तस्य निगडदोषः, तथा लंबमानो नाभेरूवभागो भवति वा कायोत्सर्गस्थस्योन्नमनमधोनमनं वा च भवति तस्य दश दिशाओं का अवलोकन, ग्रीवोन्नमन, प्रणमन, निष्ठीवन और अंगामर्श कायोत्सर्ग में इन बत्तीस दोषों का परिहार करे ॥६७०-६७२।। ___ आचारवृत्ति-वन्दना के सदृश कायोत्सर्ग के भी बत्तीस दोष होते हैं, उनको पृथक्पृथक् दिखाते हैं। १. घोटक-घोड़ा जैसे एक पैर को उठाकर अथवा झुकाकर खड़ा होता है उसी प्रकार से जो कायोत्सर्ग में खड़े होते हैं उनके घोटक सदृश यह घोटक नाम का दोष होता है। २. लता-लता के समान अंगों को हिलाते हुए। जो कायोत्सर्ग में स्थित होते हैं उनके यह लता दोष होता है। ३. स्तम्भ-जो खम्भे का आश्रय लेकर कायोत्सर्ग करते हैं अथवा स्तम्भ के समान शून्य हृदय होकर करते हैं उसके साहचर्य से यह वही दोष हो जाता है अर्थात् उनके यह स्तम्भ दोष होता है। ४. कुड्य-भित्ती-दीवाल का आश्रय लेकर जो कायोत्सर्ग से स्थित होते हैं उनके यह कुड्य दोष होता है । अथवा साहचर्य से यह उपलक्षण मात्र है। इससे अन्य का भी आश्रय लेकर नहीं खड़े होना चाहिए ऐसा सूचित होता है । ५. माला-माला-पीठ-आसन आदि के ऊपर खड़े होना अथवा सिर के ऊपर कोई रज्जु वगैरह का आश्रय लेकर अथवा सिर के ऊपर जो कुछ वहाँ हो, फिर भी कायोत्सर्ग करना वह मालदोष है। .. ६. शबरबध-भिल्लनी के समान दोनों जंघाओं से जंघाओं को पीड़ित करके जो कायोत्सर्ग से खड़े होते हैं उनके यह शबरबधू नाम का दोष है। ७. निगड-बेड़ी से पीड़ित हुए के समान पैरों में बहुत सा अन्तराल करके जो कायोत्सर्ग में खड़े होते हैं उनके निगडदोष होता है । - लम्बोत्तर–नाभि से ऊपर का भाग लम्बा करके कायोत्सर्ग करना अथवा कायो Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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