Book Title: Mulachar Purvardha
Author(s): Vattkeracharya, Gyanmati Mataji
Publisher: Bharatiya Gyanpith

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Page 539
________________ पडाव्यकाधिकारः] [४८१. कायोत्सर्गोच्छ्वासाः पंचसु स्थानेषु ज्ञातव्याः ॥६६०।। शेषेषु स्थानेषूच्छ्वासप्रमाणमाद__ 'पाणिवह मुसावाए अदत्त मेहुण परिग्गहे चेय। अटुसदं उस्सासा काप्रोसग्गह्मि कादव्वा ॥६६१॥ 'प्राणिवधातीचारे मृषावादातीचारे अदत्तग्रहणातीचारे मैथुनातिचारे परिग्रहातीचारे च कायोत्सर्गे चोच्छ्वासानामष्टोत्तरशतं कर्तव्यं नियमान्ते सर्वत्र द्रष्टव्यं शेषेषु पूर्ववदिति ॥६६१॥ पुनरपि कायोत्सर्गप्रमाणमाह भत्ते पाणे गामंतरे य अरहंतसमणसेज्जासु। उच्चारे पस्सवणे पणवीसं होंति उस्सासा ॥६६२॥ भक्ते पाने च गोचरे प्रतिक्रमणविषये गोचरादागतस्य कायोत्सर्गे पंचविंशतिरुच्छ्वासाः कर्तव्या भवन्ति, प्रस्तुतात ग्रामादन्यग्रामो यामान्तरं ग्रामान्तरगमनविषये च कायोत्सर्गे च पंचविंशतिरुच्छवासाः उच्छ्वास करना चाहिए। इस तरह कायोत्सर्ग के उच्छ्वासों का वर्णन पांच स्थानों में किया गया है। भावार्थ-पाक्षिक के समान चातुर्मासिक और वार्षिक में भी ग्यारह भक्तियाँ होती हैं जिनके नाम ऊपर भावार्थ में बताए गए हैं। उनमें से वीर भक्ति के कायोत्सर्ग में उपर्युक्त प्रमाण है। बाकी भक्तियों में नवबार णमोकार मन्त्र का जाप्य होता है। इस तरह देवसिक, रात्रिक, पाक्षिक, चातुर्मासिक और सांवत्सरिक ऐसे पाँच स्थानों के कायोत्सर्ग सम्बन्धी उच्छवासों का प्रमाण बताया है। अब शेष स्थानों में उच्छ्वासों का प्रमाण कहते हैं गाथार्थ-हिंसा, असत्य, चोरी, मैथुन और परिग्रह इन दोषों के हो जाने पर कायोत्सर्ग में एक सौ आठ उच्छ्वास करना चाहिए ॥६६१।। प्राचारवृत्ति-प्राणिवध के अतीचार में, असत्यभाषण के अतीचार में, अदत्तग्रहण के अतीचार में, मैथुन के अतीचार में और परिग्रह के अतीचार में कायोत्सर्ग करने में एक सौ आठ उच्छ्वास करना चाहिए। यहाँ भी वीरभक्ति के कायोत्सर्ग के उच्छ्वासों का यह प्रमाण है, शेष भक्तियों में मत्ताईस उच्छ्वास करना चाहिए। पुनरपि कायोत्सर्ग का प्रमाण बताते हैं गाथार्थ-भोजन पान में, ग्रामान्तर गमन में, अर्हत के कल्याणक स्थान व मुनियों की निषद्या वन्दना में और मल-मूत्र विसर्जन में पच्चीस उच्छ्वास होते हैं ।।६६२॥ प्राचारवृत्ति-गोचर प्रतिक्रमण अर्थात् आहार से आकर कायोत्सर्ग करने में पच्चीस उच्छ्वास करने होते हैं । प्रस्तुत ग्राम से अन्य ग्राम को ग्रामान्तर कहते हैं अर्थात् एक ग्राम से १ क पाण। २ क प्राण । ३ क 'न्तेषु । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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