________________
पावश्यकाधिकारः]
।४७३ आदके उवसगे समे य दुभिक्खवुत्ति कंतारे।
जं पालिदं ण भग्गं एवं अणुपालणासुद्धं ॥६४४॥
आतंकः सहसोत्थितो व्याधिः, उपसर्गो देवमनुष्यतिर्यक्कृतपीडा, श्रम उपवासालाभमार्गादिकृतः परिश्रमः ज्वररोगादिकतश्च, भिक्षवत्तिर्वर्षाकालराज्यभंगविडवरचौराद्यपद्रवभयेन शस्याद्यभावेन प्राप्त्यभावः, कान्तारे महाटवीविध्यारण्यादिकभयानकप्रदेशः, एतेषपस्थितेष्वातंकोपसर्गभिक्षवृत्तिकान्तारेष यत्प्रतिपालितं रक्षितं न भग्नं न मनागपि विपरिणामरूपं जातं तदेतत्प्रत्याख्यानमनुपालनविशुद्ध नाम ॥६४४॥
परिणामविशुद्धप्रत्याख्यानस्य स्वरूपमाह
रागेण व दोसेण व मणपरिणामेण दूमिदं जंतु।
तं पुण पंच्चक्खाणं भावविसुद्ध तु णादव्वं ॥६४५॥
रागपरिणामेन द्वेषपरिणामेन च न दूषितं न प्रतिहतं विपरिणामेन यत्प्रत्याख्यानं तत्पुनः प्रत्याख्यानं भावविशुद्ध तु ज्ञातव्यमिति । सम्यग्दर्शनादियुक्तस्य निःकांक्षस्य वीतरागस्य रामभावयुक्तस्याहिंसादिव्रतसहितशुद्धभावस्य प्रत्याख्यानं परिणामशुद्ध भवेदिति ।।६४५।।
चतुर्विधाहारस्वरूपमाह
गाथार्थ-आकस्मिक व्याधि, उपसर्ग, श्रम, भिक्षा का अलाभ और गहनवन इनमें जो ग्रहण किया गया प्रत्याख्यान भंग नहीं होता है वह अनुपालना शुद्ध है ॥६४४।।
प्राचारवृत्ति-सहसा उत्पन्न हुई व्याधि आतंक है। देव, मनुष्य और तिर्यंचकृत पीड़ा को उपसर्ग कहते हैं। उपवास, अलाभ, या मार्ग में चलने आदि से हुआ परिश्रम या ज्वर आदि रोगों के निमित्त से हुआ खेद श्रम कहलाता है। दुभिक्षवृत्ति-वर्षा का अभाव, राज्यभंग, बदमाश-लुटेरे, चोर इत्यादि के उपद्रव के भय से या धान्य आदि की उत्पत्ति के अभाव से भिक्षा का लाभ न होना, महावन, विंध्याचल, अरण्य आदि भयानक प्रदेशों में पहुँच जाना अर्थात् आतंक के आ जाने पर, उपसर्ग के आ जाने पर, श्रम से थकान हो जाने पर, भिक्षा न मिलने पर या महान् भयानक वन आदि में पहुँच जाने पर जो प्रत्याख्यान ग्रहण किया हुआ है उसकी रक्षा करना, उससे तिलमात्र भी विचलित नहीं होना सो यह अनुपालन विशुद्ध प्रत्याख्यान है।
परिणाम विशुद्ध प्रत्याख्यान का स्वरूप कहते हैं---
गाथार्थ-राग से अथवा द्वेष रूप मन के परिणामों से जो दूषित नहीं होता है वह भाव विशुद्ध प्रत्याख्यान है ऐसा जानना ॥६४५॥
प्राचारवृत्ति-राग परिणाम से या द्वेष परिणाम से जो प्रत्याख्यान दूषित नहीं होता है, अर्थात् सम्यग्दर्शन आदि से युक्त, कांक्षा रहित, वीतराग, समभावयुक्त और अहिंसादिव्रतों से सहित शुद्ध भाववाले मुनि का प्रत्याख्यान परिणाम शुद्ध प्रत्याख्यान कहलाता है। .
चार प्रकार के आहार का स्वरूप बताते हैं
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org