Book Title: Mulachar Purvardha
Author(s): Vattkeracharya, Gyanmati Mataji
Publisher: Bharatiya Gyanpith

View full book text
Previous | Next

Page 532
________________ ४७४] [मूलाचारे असणं खहप्पसमणं पाणाणमणुग्गहं तहा पाणं। खादंति खादियं पुण सादंति सादियं भणियं ॥६४६॥ अशनं क्षुदुपशमनं बुभुक्षोपरतिः प्राणानां दशप्रकाराणामनुग्रहो येन तत्तथा खाद्यत इति खाद्य रसविशुद्ध लडुकादि पुनरास्वाद्यत इति आस्वाद्य मेलाकक्कोलादिकमिति भणितमेवंविधस्य चतुर्विधाहारस्य प्रत्याख्यानमुतमार्थप्रत्याख्यानमिति ॥६४६।। चतुर्विधस्याहारस्य भेदं प्रतिपाद्याभेदार्थमाह-- सव्वोवि य आहारो असणं सम्वोवि वुच्चदे पाणं । सव्वो वि खादियं पुण सव्वोवि य सादियं भणियं ॥६४७।। __ सर्वोऽप्याहारोऽशनं तथा सर्वोऽप्याहारः पानमित्युच्यते तथा सर्वोऽप्याहारः खाद्यं तथा सर्वोऽप्याहारः स्वाद्यमिति भणितं एवं चतुर्विधस्याप्याहारस्य द्रव्याथिकनयापेक्षयैक्यं आहारत्वेनाभेदादिति ॥६४७॥ पर्यायाथिकनयापेक्षया पुनश्चतुर्विधस्तथैव प्राह- . असणं पाणं तह खादियं चउत्थं च सादिय भाणयं। एवं परूविदं दु सद्दहिदुं जे सुही होदि ।।६४८॥ एवमशनपानखाद्यस्वाद्यभेदेनाहारं चतुर्विधं प्ररूपितं श्रद्धाय सुखी भवतीति फलं व्याख्यातं भवतीति ॥६४८॥ गाथार्थ-क्षुधा को शांत करनेवाला अशन, प्राणों पर अनुग्रह करनेवाला पान है। जो खाया जाय वह खाद्य एवं जिसका स्वाद लिया जाय वह स्वाद्य कहलाता है ॥६४६॥ - आचारवत्ति--जिससे भख की उपरति-शान्ति हो जाती है वह अशन है। जिसके आ द्वारा दश प्रकार के प्राणों का उपकार होता है वह पान है । जो खाये जाते हैं वे खाद्य हैं। रस सहित लड्डू आदि पदार्थ खाद्य हैं । जिनका आस्वाद लिया जाता है वे इलायची कक्कोल आदि स्वाद्य हैं। इन चारों प्रकार के आहार का त्याग करना उत्तमार्थ प्रत्याख्यान कहलाता है। · चार प्रकार के आहारों का भेद बताकर अब उनका अभेद दिखाते हैं गाथार्थ-सभी आहार अशन कहलाता है। सभी आहार पान कहलाता है। सभी आहार खाद्य और सभो ही आहार स्वाद्य कहा जाता है ।।६४७॥ प्राचारवृत्ति-सभी आहार अशन हैं, सभी आहार पान हैं, सभी आहार खाद्य हैं एवं सभी आहार स्वाद्य हैं। इस तरह चारों प्रकार का आहार द्रव्याथिक नय की अपेक्षा से एकरूप है क्योंकि आहारपने की अपेक्षा से सभी में अभेद है। पर्यायार्थिक नय की अपेक्षा से पुनः आहार चार भेदरूप है गाथार्थ-अशन, पान, खाद्य तथा चौथा स्वाद्य कहा गया है। इन कहे हुए उपदेश का श्रद्धान करके जीव सुखी हो जाता है ॥६४८।।। प्राचारवृत्ति-इन अशन आदि चार भेद रूप कहे गए आहार का श्रद्धान करके जीव सुखी हो जाता है यह इसका फल बताया गया है । अर्थात उत्तमार्थी इन सब का त्यागकर सुखी होता है यह फल है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 530 531 532 533 534 535 536 537 538 539 540 541 542 543 544 545 546 547 548 549 550 551 552 553 554 555 556 557 558 559 560 561 562 563 564 565 566 567 568 569 570 571 572 573 574 575 576 577 578 579 580