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[मूलाचारे
पुणु- - तच्छ्ब्दः पूर्व प्रक्रान्तपरामर्शी ते पुनररूपिणोऽजीवाः । धम्माधम्मागासा य-- धर्माधर्माका - शानि । किंलक्षणानि अरूविणोय - - अरूपीणि रूपरसगन्धस्पर्शरहितानि । तह कालो—तथा कालश्चारूपी लोकमात्रः सप्तरज्जूनां घनीकृतानां यावन्तः प्रदेशास्तावत्परिमाणानि, अलोकाकाशं पुनरनन्तं । स्कन्धादयः के ते आह—स्कन्धदेश प्रदेशा अणुरिति च पुद्गलाः पूरणगलनसमर्थाः । रूवी - रूपिणो रूपरसगन्धस्पर्शवन्तोऽनन्तपरिमाणाः । ननु कालः किमिति कृत्वा पृथग्व्याख्यातश्चेत् नैष दोषः, धर्माधर्माकाशान्यस्तिकायरूपाणि कालः पुनरनस्तिकायरूप एकैकप्रदेशरूप:; निचयाभावप्रतिपादनाय पृथग्व्याख्यात इति । रूपिणः पुद्गला इति 'ज्ञापनार्थं पुनः स्कंधादिग्रहणमतो न पौनरुत्वयं । धर्मादीनां च स्कन्धादिभेदप्रतिपादनार्थं च पुनर्ग्रहणम् ॥२३२॥
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आचारवृत्ति - 'तत्' शब्द पूर्व प्रकरण का परामर्श करनेवाला है । वे पुनः अरूपी अजीव द्रव्य हैं । अर्थात् धर्म, अधर्म और आकाश ये अजीव द्रव्य रूप, रस, गंध और स्पर्श से रहित होने से अरूपी हैं । उसी प्रकार से काल द्रव्य भी अरूपी है । यह लोकमात्रप्रमाण है अर्थात् घनरूप सात राजू (७×७×७= - ३४३ ) के जितने प्रदेश हैं यह काल द्रव्य उतने प्रमाण है । धर्मद्रव्य, अधर्मद्रव्य, इनके प्रदेश लोकाकाश प्रमाण हैं । अलोकाकाश अनन्तप्रदेशी है ।
कंधादि हैं वे क्या है ?
स्कंध, देश, प्रदेश और अणु ये सब पुद्गल द्रव्य हैं । यह पूरण और गलन में समर्थ है अर्थात् पूरण गलन स्वभाववाला है । यह पुद्गलद्रव्य रूप, रस, गंध और स्पर्श वाला है. अनन्तपरिमाण है ।
करके परमाणु तक भेद कर देती हैं । किन्तु कुन्द कुन्द देव ने नियमसार में स्कन्ध के छह भेद किये हैं और परमाणु के भेद अलग किये हैं । उसमें सूक्ष्म सूक्ष्म भेद के उदाहरण में कर्म के अयोग्य पुद्गल वर्गणाएँ ली गई हैं ।
यथा-
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अइलल थूलं थूलसुहुमं च सुहुमथूलं च । सुमं अइसहमं इदि धरादियं होदि छन्भेयं ॥ २१ ॥ भूपव्वदमादीया भणिदा अइथूलथूलमिदि खंधा । थला इदि विष्णेया सप्पीजलतेलमादीया ॥ २२॥ छायातवमादीया थूले दरबंधमिदि वियाणाहि । सुहुमथूलेदि भणिया खंधा चउरक्खविसया य ॥२३॥ सुहुमा हवंति खंधा पाओग्गा कम्मवग्गणस्स पुणो । तव्विवरीया खंधा अइसुहमा इदि परूवेति ॥ २४॥
अर्थ — अतिस्थूलस्थूल, स्थूल, स्थूलसूक्ष्म, सूक्ष्मस्थूल, सूक्ष्म और अतिसूक्ष्म ऐसे पृथिवी आदि स्कन्धों के छह भेद हैं। भूमि, पर्वत आदि अतिस्थूल स्कन्ध कहे गये हैं। घी, जल, तेल आदि स्थूल स्कन्ध हैं । छाया, आता आदि स्थूलसूक्ष्म स्कन्ध हैं। चार इन्द्रिय के विषय भूत स्कन्ध सूक्ष्मस्थूल हैं । कर्मवर्गणा योग्य स्कन्ध सूक्ष्म हैं | उनसे विपरीत अर्थात् कर्मवर्गणा के अयोग्य स्कन्ध अतिसूक्ष्म कहे गये हैं ।
पंचास्तिकाय में भी स्कन्धों के ही छह भेद और ये ही उदाहरण हैं ।
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