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पंचाचाराधिकारः ]
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एवं दर्शनज्ञानचारित्रतपोवीर्याचा रैरात्मानं निग्रहयितुं नियंत्रयितु यः समर्थः 'श्रवणः साधुः स बच्छति सिद्धि घुतक्लशो विधूताष्टकर्मा । एवं पंचाचारो व्याख्यातः ॥४१॥
इति वसुनन्दिविरचितायामाचारवृत्तौ पंचाचारविवर्णनं नाम पंचमः प्रस्तावः समाप्तः ॥५॥
श्राचारवृत्ति - इस प्रकार दर्शनाचार, ज्ञानाचार, चारित्राचार, तप आचार और र्याचार के द्वारा जो साधु अपनी आत्मा को नियंत्रित करने के लिए समर्थ है वह अष्टकर्मों को नष्ट करके सिद्धि को प्राप्त कर लेता है । इस प्रकार यह पाँच आचारों का व्याख्यान किया गया है ।
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इस प्रकार श्री वट्टकेर आचार्य कृत मूलाचार की श्री वसुनंदि आचार्य कृत आचारवृत्ति नामक टीका में पंचाचार का वर्णन करने वाला पाँचवाँ प्रस्ताव समाप्त हुआ ।
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