Book Title: Mulachar Purvardha
Author(s): Vattkeracharya, Gyanmati Mataji
Publisher: Bharatiya Gyanpith

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Page 474
________________ [मूलाचारे क्त्वमनुष्यत्वदेवत्वादिस्वरूपेण संस्थानं । यद्दष्टं संस्थानं द्रव्याणां गुणानां 'पर्यायाणां च चिह्नलोकं विजानीहीति ॥५४६॥ कषायलोकमाह कोधो माणो माया लोभी उदिण्णा जस्स जंतुणो। कसायलोगं वियाणाहि अणंतजिणदेसिदं ॥५५०॥ यस्य जन्तोर्जीवस्य क्रोधमानमायालोभा उदीर्णा उदयमागताः तं कषायलोक विजानीहीति अनन्तजिनदर्शितम् ॥५५०॥ भवलोकमाह णेरइयदेवमाणुसतिरिक्खजोणि गदाय जे सत्ता। णिययभवे वट्ट ता भवलोगं तं विजाणाहि ॥५५१॥ नारकदेवमनुष्यतिर्यग्योनिषु गताश्च ये जीवा निजभवे निजायुःप्रमाणे वर्तमानारतं भवलोकं विजानीहीति ॥५५॥ भावलोकमाह गुणों के संस्थान को कहते हैं-द्रव्य के आकार से रहना गुणों का संस्थान है अथवा कृष्ण, नील, शुक्ल, आदि स्वरूप जो गुण हैं उन रूप से रहना गुणों का संस्थान है । पर्यायों के संस्थान को भी बताते हैं-दीर्घ, ह्रस्व, गोल, त्रिकोण, चतुष्कोण आदि तथा नारकत्व, तिर्यक्त्व, मनुष्यत्व, और देवत्व आदि स्वरूप से आकार होना यह पर्यायों का संस्थान है । अर्थात् दीर्व, ह्रस्व आदि आकार पुद्गल की पर्यायों के हैं । तथा नारकपना आदि संस्थान जोव की पर्यायों के हैं। इस प्रकार से जो भी द्रव्यों के गुणों के, तथा पर्यायों के संस्थान देखे जाते हैं उन्हें ही चिह्नलोक जानो। कषायलोक को कहते हैं गाथार्थ-क्रोध, मान, माया और लोभ जिस जीव के उदय में आ रहे हैं, उसे अनन्त जिन देव के द्वारा कथित कषायलोक जानो ॥५५०।। प्राचारवृत्ति-जिन जीवों के क्रोधादि कषायें उदय में आ रही हैं, उन कषायों को अथवा उनसे परिणत हुए जीवों को कषायलोक कहते हैं। भवलोक को कहते हैं माथार्थ-नारक, देव, मनुष्य और तिर्यंच योनि को प्राप्त हुए जो जीव अपने भव में वर्तमान हैं उन्हें भवलोक जानो ॥५५१॥ __प्राचारवृत्ति-नरक आदि योनि को प्राप्त हुए जीव अपने उस भव में अपनी-अपनी आयु प्रमाण जीवित रहते हैं । उन जीवों के भावों को या उन जीवों को ही भवलोक कहा है । भावलोक को कहते हैं-- Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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