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षडावश्यकाधिकारः
[४१५ आयासं सपदेशं उड्ढमहो तिरियलोगं च ।
खेत्तलोगं वियाणाहि अणंतजिणदेसिदं ॥५४८॥
आकाशं सप्रदेश प्रदेशः सह । ऊर्ध्वलोक मध्यलोकमधोलोकं च । एतत्सर्व क्षेत्रलोकमनन्तजिनदष्टं विजानीहीति ॥५४८॥
चिह्नलोकमाह
जं विट्ठ ठाणं दवाण गुणाण पज्जयाणं च ।
चिण्हलोगं वियाणा हि अणंतजिणदेसिदं ॥५४६॥
द्रव्यसंस्थानं धर्माधर्मयोलॊकाकारेण संस्थानं । कालद्रव्यस्याकाशप्रदेशस्वरूपेण संस्थानं। आकाशस्य केवलज्ञानस्वरूपेण संस्थानं । लोकाकाशस्य गृहगुहादिस्वरूपेण संस्थानं । पुद्गलद्रव्यस्य लोकस्वरूपेण संस्थान द्वीपनदीसागरपर्वतपृथिव्यादिरूपेण संस्थानं । जीवद्रव्यस्य समचतुरस्रन्यग्रोधादिस्वरूपेण संस्थानं। गुणानां द्रव्याकारेण कृष्णनीलशुक्लादिस्वरूपेण वा संस्थानं । पर्यायाणां दीर्घह्रस्ववृत्तव्यस्रचतुरस्रादिनारकत्वतिर्य
गाथार्थ-आकाश सप्रदेशी है । ऊर्ध्व, अधः और मध्य लोक हैं । अनन्त जिनेन्द्र द्वारा देखा गया यह सब क्षेत्रलोक है, ऐसा जानो ॥५४८॥
प्राचारवृत्ति-आकाश अनन्त प्रदेशी है किन्तु लोकाकाश में असंख्यात प्रदेश हैं। उसमें ऊर्ध्वलोक, मध्यलोक और अधोलोक ऐसे भेद हैं । अनन्त-शाश्वत जिनेन्द्र देव के द्वारा देखा गया यह सब क्षेत्रलोक है ऐसा तुम समझो।
चिह्नलोक को कहते हैं
गाथार्थ-द्रव्य, गुण और पर्यायों का जो आकार देखा जाता है अनन्त जिन द्वारा दृष्ट वह चिह्न लोक है ऐसा जानो ॥५४६।।
प्राचारवृत्ति-पहले द्रव्य का संस्थान--आकार बताते हैं । धर्म और अधर्म द्रव्य का लोकाकार से संस्थान है अर्थात् ये दोनों द्रव्य लोकाकाश में व्याप्त होने से लोकाकाश के समान ही आकारवाले हैं। काल द्रव्य का आकाश के एक प्रदेश स्वरूप से आकार है अर्थात् काल द्रव्य असंख्यात हैं । प्रत्येक कालाणु लोकाकाश के एक-एक प्रदेश पर स्थित हैं इसलिए जो एक प्रदेश का आकार है वही कालाणु का आकार है। आकाश का केवलज्ञान स्वरूप से संस्थान है। लोकाकाश का घर, गुफा आदि स्वरूप से संस्थान है । पुद्गल द्रव्य का लोकस्वरूप से संस्थान है तथा द्वीप, नदी, सागर, पर्वत और पृथ्वी आदि रूप से संस्थान है। अर्थात् महास्कन्ध की अपेक्षा पुद्गल द्रव्य का आकार लोकाकाश जैसा है क्योंकि वह महास्कन्ध लोकाकाशव्यापी है। तथा अन्य पुद्गल स्कन्ध नदी, द्वीप आदि आकार से स्थित हैं। जाव द्रव्य का समचतुरस्र, न्यग्रोध आदि स्वरूप से संस्थान है अर्थात् नाम कर्म के अन्तर्गत संस्थान के समचतुरस्र, संस्थान, न्यग्रोधपरिमण्डल, स्वाति, वामन, कुब्जक और हुंडक ऐसे छह भेद माने हैं । जीव संसार में छहों में से किसी एक संस्थान को लेकर ही शरीर धारण करता है तथा मुक्त जीव भी जिस संस्थान से मुक्त होते हैं उनके आत्म प्रदेश मुक्तावस्था में उसी आकार के ही रहते हैं। इस प्रकार यहाँ द्रव्यों के संस्थान कहे गये।
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