Book Title: Mulachar Purvardha
Author(s): Vattkeracharya, Gyanmati Mataji
Publisher: Bharatiya Gyanpith

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Page 489
________________ पडावश्यकाधिकारः] [४३१ लोकस्यानुवृत्तिरनुवर्त्तनं लोकानुवृत्तिर्नाम प्रथमो विनयः, अर्थस्य निमित्तमर्थनिमित्त कार्यहतुर्विनयो द्वितीयः, कामतंत्रे कामतंत्रहेतुः कामानुष्ठाननिमित्तं तृतीयो विनयः, भयविनयश्चतुर्थः' भयकारणेन य: क्रियते विनयः स चतुर्थः, पंचमो मोक्षविनयः; एवं कारणेन पंचप्रकारो विनय इति ॥५८२॥ तत्रादौ तावल्लोकानुवृत्तिविनयस्वरूपमाह अब्भुट्ठाणं अंजलि पासणदाणं च अतिहिपूजा य । लोगाणुवित्तिविणो देवदपूया सविहवेण ॥५८३॥ अभ्युत्थानं कश्मिश्चिदागते आसनादुत्थानं प्रांजलिरंजलिकरणं स्वावासमागतस्यासनदानं तथाऽतिथिपूजा च मध्याह्नकाले आगतस्य साधोरन्यस्य वा धार्मिकस्य बहुमानं देवतापूजा च स्वविभवेन स्ववित्तानुसारेण देवपूजा च तदेतत्सर्व लोकानुवृत्तिर्नाम विनयः ।।५८३॥ तथा भासाणुवत्ति छंदाणुवत्तणं देसकालदाणं च। लोकाणुवत्तिविणो अंजलिकरणं च अत्थकदे ॥५८४॥ भाषाया वचनस्यनुवृत्तेरनुवर्तनं यथासी वदति तथा सोऽपि भणति भाषानुवृत्तिः, छंदानु आचारवृत्ति-लोक की अनुकूलता करना सो लोकानुवृत्ति का पहला विनय है। अर्थ-कार्य के हेतु विनय करना दूसरा अर्थनिमित्त विनय है। काम के अनुष्ठान हेतु विनय करना कामतन्त्र नाम का तीसरा विनय है । भय के कारण से विनय करना यह चौथा भय विनय है । और मोक्ष के हेतु विनय पाँचवाँ मोक्षविनय है। उनमें से पहले लोकानुवृत्ति विनय का स्वरूप कहते हैं गाथार्थ-उठकर खड़े होना, हाथ जोड़ना, आसन देना, अतिथि की पूजा करना, और अपने विभव के अनुसार देवों की पूजा करना यह लोकानुवृत्ति विनय है ।।५८३॥ प्राचारवृत्ति-किसी के अर्थात् बड़ों के आने पर आसन से उठकर खड़े होना, अंजुलि जोड़ना, अपने आवास में आये हुए को आसन देना, अतिथि पूजा-मध्याह्न काल में आये हए साध या अन्य धार्मिकजन अतिथि कहलाते हैं उनका बहुमान करना, और अपने विभव या धन के अनुसार देवपूजा करना, सो यह सब लोकानुवृत्ति नाम का विनय है । तथा गाथार्थ-अनुकूल वचन बोलना, अनुकूल प्रवृत्ति करना, देशकाल के योग्य दान देना, अंजुलि जोड़ना और लोक के अनुकूल रहना सो लोकानुवृत्ति विनय है तथा अर्थ के निमित्त से ऐसा ही करना अर्थविनय है ॥५८४॥ प्राचारवृत्ति-भाषानुवृत्ति-जैसे वे बोलते हैं वैसे ही बोलना, छन्दानुवर्तन- उनके अभिप्राय के अनुकूल आचरण करना, देश के योग्य और काल के योग्य दान देना १.र्थः पंचमो। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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