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४१८]
[मूलाचारे उद्योतस्य स्वरूपमाह
उज्जोवो खलु दुविहो णादव्वो दवभावसंजुत्तो।
दव्वुज्जोवो 'अग्गी चंदो सूरो मणी चेव ॥५५४॥
उद्योतः प्रकाश खलु द्विविधः स्फुटं ज्ञातव्यो द्रव्यभावभेदेन । द्रव्यसंयुक्तो भावसंयुक्तश्च । तत्र द्रव्योद्योतोऽग्निश्चन्द्रः सूर्यो मणिश्च । एवकारः प्रकारार्थः। एवंविधोऽन्योऽपि द्रव्योद्योतो ज्ञात्वा वक्तव्य इति ॥५५६।।
भावोद्योतं निरूपयन्नाह
भावुज्जोवो णाणं जह भणियं सव्वभावदरिसीहि ।
तस्स दु पओगकरणे भावुज्तोवोत्ति णादव्वो॥५५५॥
भावोद्योतो नाम ज्ञानं यथा भणितं सर्वभावशभिः येन प्रकारेण सर्वपदार्थदशभिर्ज्ञानमुक्तं तदभावोद्योतः परमार्थोद्योतस्तथा ज्ञानस्योपयोगकरणात् स्वपरप्रकाशकत्वादभावोद्योत इति ज्ञातव्यः ॥५५७।।
पुनरपि भावोद्योतस्य भेदमाह
पंचविहो खलु भणिओ भावुन्नोवो य जिणवारदेहि । आभिणिबोहियसुदओहि-णाणमणकेवलमनोय॥५५६॥
उद्योत का स्वरूप कहते हैं
गाथार्थ-द्रव्य और भाव से युक्त उद्योत निश्चय से दो प्रकार का जानना चाहिए। अग्नि, चन्द्र, सूर्य और मणि ये द्रव्य उद्योत हैं ।।५५४।।
प्राचारवत्ति-उद्योत-प्रकाश स्पष्ट रूप से द्रव्य और भाव के भेद से दो प्रकार का ह । अर्थात् द्रव्यसंयुक्त और भावसंयुक्त उद्योत । उसमें अग्नि, सूर्य, चन्द्रमा और मणि : ये द्रव्य-उद्योत हैं। इसी प्रकार के अन्य भी द्रव्य-उद्योत जानकर कहना चाहिए। अर्थात् प्रकाशमान पदार्थ को यहाँ द्रव्य-उद्योत कहा गया है।
भाव-उद्योत को कहते हैं
गाथार्थ-भाव-उद्योत ज्ञान है जैसाकि सर्वज्ञदेव के द्वारा कहा गया है। उसके उपयोग करने में भाव उद्योत है ऐसा जानना चाहिए ॥५५५।।
प्राचारवृत्ति-जिस प्रकार से सर्वपदार्थ के देखने, जाननेवाले सर्वज्ञदेव ने ज्ञान का कथन किया है वह भाव उद्योत है, वही परमार्थ उद्योत है। वह ज्ञान स्वपर का प्रकाशक होने से भाव उद्योत है ऐसा जानना चाहिए । अर्थात् ज्ञान ही चेतन-अचेतन पदार्थों का प्रकाशक होने से सच्चा प्रकाश है।
पुनः भाव-उद्योत के भेद कहते हैं
गाथार्थ-जिनवर देव ने निश्चय से भावोद्योत पाँच प्रकार का कहा है। वह आभिनि१ जोऊ द। १ लणेयं ।
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