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[ ३-१
काका उपलक्षणार्थी गृहीतस्तेन काकवकश्येनादयः परिगृह्यन्ते । गच्छतः स्थितस्य वा बक- काकादयो यदुपर व्युत्सर्ग कुर्वन्ति तदपि काक इत्युच्यते साहचर्यात् । काको नाम भोजनस्यान्तरायः । तथाऽमेध्यमशुचि तेन पादादिकं यलिप्तं तदप्यमेध्यमिति साहचर्यात्, अमेध्यं नामान्तरायः । तथा छर्दिमनमात्मनो यदि भवति । तथा रोधनं यदि कश्चिद्धरणादिकं करोति । तथा रुधिरमात्मनोऽन्यस्य वा यदि पश्यति । चशब्देन पूयादिकं च ग्राह्यं । तथाऽश्रुपातो दुःखेनात्मनो यद्यश्रूण्यागच्छन्ति परेषामपि सन्निकृष्टानां यद्ययं दोषो भवेत् । तथा जान्वध: आमर्शो जान्वधः परामर्शः । तथा जानूपरि व्यतिक्रमश्चैव । सर्वत्रान्तरायेण सम्बन्ध इति ।।४६५।। तथा---
नाभ्यधो निर्गमनं नाभेरधो मस्तकं कृत्वा यदि निर्गमनं भवेत् । तथा प्रत्याख्यातस्य सेबना च, अवग्रहो यस्य वस्तुनस्तस्य यदि भक्षणं स्यात् । तथा जन्तुवधः आत्मनोऽन्येन या पुरतो जीवबधो यदि किमते । तथा काकादिभिः पिंडहरणं यदि काकादयः पिण्डमपहरन्ति । तथा पाणिपात्रात्पिण्डपतनं भुजानस्य पाणिपुटायदि पिण्डो ग्रासमात्रं वा पतति ।।४६६॥ तथा-
पाणिपात्रे जन्तुबधो जन्तुरात्मनागत्य पाणी भुजानस्य यदि म्रियते । तथा मांसादिदर्शनं मासं मृतपंचेन्द्रियशरीरं इत्येवमादीनां दर्शनं यदि स्यात् । तथोपसर्गो दैविकाद्युपसर्गो यदि स्यात् । तथा पादाम्ल बत्तीस अन्तराय कहे गये हैं। इन सभी में अन्तराय शब्द का प्रयोग
श्राचारवृत्ति
कर लेना चाहिए ।
१. काक -- गमन करते हुए या स्थित हुए मुनि के ऊपर यदि काक, बक आदि पक्षी वीट कर देवे तो वह काक नाम का अन्तराय है । यहाँ 'काक' शब्द उपलक्षण मात्र है अतः काक वक, बाज, आदि का ग्रहण कर लेना चाहिए; क्योंकि साहचर्य की अपेक्षा यह कथन किया गया है । २. अमेध्य - अशुचि पदार्थ विष्ठा आदि से यदि पैर लिप्त हो जाय तो अन्तराय होता है । यहाँ पर अमेध्य के साहचर्य इस अन्तराय को भी अमेध्य कह दिया है । ३. वमन - यदि स्वयं को वमन हो जाय तो वमन नाम का अन्तराय है । ४. रोधन- यदि कोई उस समय रोक दे या पकड़ ले तो अन्तराय है । ५. रुधिर - यदि अपने या अन्य के शरीर से रुधिर' निकलता हुआ दिख जाय । गाथा में 'च' शब्द का तात्पर्य है कि पीव आदि दिखने से भी अन्तराय है । ६. अनुपात -- दुःख से यदि अपने अथवा पास में स्थित किसी अन्य के भी अश्रु आ जायें, ७ जान्वधः परामर्श - घुटनों से नीचे भाग का यदि हाथ से स्पर्श हो जाय, 5. जानूपरि पतिक्रम - घुटनों से ऊपर के अवयवों का स्पर्श हो जावे, ६. नाभ्यधोनिर्गमन - नाभि से नीचे मस्तक करके यदि निकलना पड़ जाये, १०. प्रत्याख्यात सेवना--- जिस वस्तु का त्याग है यदि उसका भक्षण हो जावे, ११ जन्तु वध -- यदि अपने से या अन्य के द्वारा सामने किसी जन्तु का बध हो जावे, १२. काकादिपिडहरण - यदि कौवे आदि हाथ से ग्रास हरण कर लेवें, १३. पिंडपतन - यदि आहार करते हुए अपने पाणि-पात्र से पिंड ग्रास मात्र का पतन हो जाये, १४.
१. चार अंगुल प्रमाण रुधिर- पीव दिखने से अन्तराय होता है इससे कम नहीं । "efre स्वाम्यदेहाभ्यां बहतश्चतुरंगलं ततो म्यून बहने मास्त्वंतरायः ।"
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[ अनगार धर्मामृत, अ. ५, श्लोक ४५ ]
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