Book Title: Mulachar Purvardha
Author(s): Vattkeracharya, Gyanmati Mataji
Publisher: Bharatiya Gyanpith

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Page 452
________________ ३६४] [मूलाधारे भाव। द्रव्यसामायिक नाम । कानिचित् क्षेत्राणि रम्याणि आरामनगरनदीकूपवापीतडागजनपदोपचितानि, कानिचिच्च क्षेत्राणि रूक्षकंटकविषमविरसास्थिपाषाणसहितानि जीर्णाटवीशुष्कनदीमरुसिकतापुंजादिबाहुल्यानि तेषूपरि रागद्वेषयोरभावः क्षेत्रसामायिकं नाम । प्रावृड्वर्षाहमन्तशिशिरवसन्तनिदाघाः षड्ऋतवो रात्रिदिवसशुक्लपक्षकृष्णपक्षाः कालस्तेषपरि रागद्वेषवर्जनं कालसामायिक नाम । सर्वजीवेषपरि मैत्रीभावोऽशुभपरिणामवर्जनं भावसामायिक नाम । अथवा जातिद्रव्यगुणक्रियानिरपेक्ष संज्ञाकरणं सामायिकशब्दमानं नामसामायिक । नाम । सामायिकावश्यकेन परिणतस्याकृतिमत्यनाकृतिमति च वस्तुनि गुणारोपणं स्थापनासामायिकं नाम । द्रव्यसामायिकं द्विविधं आगमद्रव्यसामायिक नोआगमद्रव्यसामायिकं चेति । सामायिकवर्णनप्राभूतज्ञायी अनुपयुक्तो जीव आगमद्रव्यसामायिकं नाम । नोआगमद्रव्यसामायिक विविध सामायिकवर्णनप्राभतज्ञायकशरीरसामायिकप्राभतभविष्यज्ज्ञायकजीवतद्वयतिरिक्तभेदेन । ज्ञायकशरीरमिति त्रिविधं भूतवर्तमानभविष्यभेदेन । भूतमपि त्रिविधं च्युतच्यावितत्यक्तभेदेन । सामायिकपरिणतजीवाधिष्ठितं क्षेत्र क्षेत्रसामायिकं नाम । यस्मिन् काले सोना, चाँदी, मोती, माणिक्य आदि तथा लकड़ी,मिट्टी का ढेला और कंटक आदिकों में समान भाव रखना, उनमें राग-द्वेष नहीं करना द्रव्य सामायिक है। कोई-कोई क्षेत्र रम्य होते हैं; जैसे कि बगीचे, नगर, नदी, कूप, बावडी, तालाब, जनपद—देश आदि से सहित स्थान, तथा कोई-कोई क्षेत्र अशोभन होते हैं; जैसे कि रूक्ष, कंटकयुक्त, विषम, विरस, हड्डी और पाषाण सहित स्थान, जीर्ण अटवी, सूखी नदी, मरुस्थल-बालू के पुंज की बहुलतायुक्त भूमि, इन दोनों प्रकार के क्षेत्रों में राग-द्वेष का अभाव होना क्षेत्र सामायिक कहा गया है। प्रावड, वर्षा, हेमन्त शिशिर, वसंत और निदाघ अर्थात् ग्रीष्म इस प्रकार इन छह ऋतुओं में, रात्रि दिवस तथा शुक्लपक्ष और कृष्णपक्ष में, इन कालों में राग-द्वेष का त्याग काल सामायिक है। सभी जीवों पर मैत्री भाव रखना और अशुभ परिणामों का त्याग करना यह भाव सामायिक है। अथवा जाति, द्रव्य, गुण और क्रिया से निरपेक्ष किसी का 'सामायिक' ऐसा शब्द मात्र संज्ञाकरण करना-नाम रख देना नाम सामायिक है। सामायिक आवश्यक से परिणित हुए आकार वाली अथवा अनाकार वाली किसी वस्तु में गुणों का आरोपण करना स्थापना सामायिक है। दव्य सामायिक के दो भेद हैं--आगम द्रव्य सामायिक और नो-आगम द्रव्य सामायिक । सामायिक के वर्णन करनेवाले शास्त्र को जाननेवाला किन्तु जो उस समय उस विषय में उपयोग युक्त नहीं है वह आगम द्रव्य सामायिक है । नो-आगम द्रव्य सामायिक के तीन भेद हैं-ज्ञायक शरीर, भावी और तद्व्यतिरिक्त । सामायिक के वर्णन करनेवाले प्राभूत को जानने वाले का शरीर ज्ञायकशरीर है, भविष्यकाल में सामायिक प्राभूत को जाननेवाला जीव भावी है और उससे भिन्न तद्व्यतिरिक्त है । ज्ञायकशरीर के भी तीन भेद हैं-भूत, वर्तमान और भविष्यत् । भूतकालीन ज्ञायकशरीर के भी तीन भेद हैं-च्युत, च्यावित और त्यक्त। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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