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[मूलाचार
महव्वदा-महाव्रतानि । पंचपण्णता-पंच प्रज्ञप्तानि । यस्मादन्यस्मै प्रतिपादयितु स्वेच्छयानुष्ठातु विभक्तु, विज्ञातु चापि भवति सुखतरं सामायिकं, तेन कारणेन महावतानि पंच प्रज्ञप्तानीति ॥५३६।।
किमर्थ मादितीर्थेऽन्ततीर्थे च च्छेदोपस्थापन'संयममित्याशंकायामाह
प्रादीए दुविसोधण णिहणे तह सुठ्ठ दुरणुपाले य।
पुरिमा य पच्छिमा वि हु कप्पाकप्पं ण जाणंति ॥५३७॥
आदितीर्थे शिष्याः दुःखेन शोध्यन्ते सुष्ठ ऋजुस्वभावा यतः । तथा पश्चिमतीर्थे शिष्याः दुःखेन प्रतिपाल्यन्ते सुष्ठ वस्वभावा यतः। पूर्वकालशिष्याः पश्चिमकालशिष्याश्च अपि स्फुटं कल्प्यं योग्यं अकल्प्यं अयोग्यं च न जानन्ति यतस्ततः आदौ निधने च छेदोपस्थानमुपदिशत इति ॥५३७||
अर्थात जिस हेतु से अन्य शिष्यों को प्रतिपादन करने के लिए, अपनी इच्छानुसार उनका अन ष्ठान करने के लिए, विभाग करके समझने के लिए भी सामायिक संयम सरल हो जाता है इस लिए महाव्रत पाँच कहे गये हैं।
आदितीर्थ में और अन्ततीर्थ में छेदोपस्थापना संयम को किसलिए कहा ? ऐसी आशंका होने पर कहते हैं
गाथार्थ-आदिनाथ के तीर्थ में शिष्य कठिनता से शद्ध होने से तथा अन्तिम तीर्थंकर के तीर्थ में द:ख से उनका पालन होने से वे पूर्व के शिष्य और अन्तिम तीर्थकर के शिष्य योग्य और अयोग्य को नहीं जानते हैं ॥५३७।।
आचारवत्ति-आदिनाथ के तीर्थ में शिष्य दुःख से शुद्ध किये जाते हैं, क्योंकि वे अत्यर्थ सरल स्वभावी होते हैं । तथा अन्तिम तीर्थंकर के तीर्थ में शिष्यों का दुःख से प्रतिपालन किया जाता है, क्योंकि वे अत्यर्थ वक्रस्वभावी होते हैं। ये पूर्वकाल के शिष्य और पश्चिम काल के शिष्य-दोनों समय के शिष्य भी स्पष्टतया योग्य अर्थात् उचित और अयोग्य अर्थात अनुचित नहीं जानते हैं इसीलिए आदि और अन्त के दोनों तीर्थंकरों ने छेदोपस्थापना संयम का उपदेश दिया है।
भावार्थ-आदिनाथ के तीर्थ के समय भोगभूमि समाप्त होकर ही कर्मभूमि प्रारम्भ हुई थी, अतः उस समय के शिष्य बहुत ही सरल और किन्तु जड़ (अज्ञान) स्वभाव वाले थे तथा अन्तिम तीर्थंकर के समय पंचमकाल का प्रारम्भ होनेवाला था अतः उस समय के शिष्य बहुत ही कुटिल परिणामी और जड़ स्वभावी थे इसीलिए इन दोनों तीर्थंकरों ने छेद अर्थात् भेद के उपस्थापन न अर्थात् कथन रूप पांच महाव्रतो का उपदेश दिया है। शेष बाईस तीर्थंकरों के समय के शिष्य विशेष बुद्धिमान थे, इसीलिए उन तीर्थंकरों ने मात्र 'सर्व सावंद्य योग' के त्यागरूप एक सामायिक संयम का ही उपदेश दिया है। क्योंकि उनके लिए उतना ही पर्याप्त था। आज भगवान् महावीर का ही शासन चल रहा है अतः आज कल के सभी साधुओं को भेदरूप चारित्र के पालन का ही उपदेश है। १क 'दि अंत । २ क नाम ।
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