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[मूलाचारे तस्य (स्या) भेदान् प्रतिपादयन्नाह
सामाइय चउवीसत्थव वंदणयं पडिक्कमणं ।
पच्चक्खाणं च तहा काओसग्गो हवदि छट्ठो।।५१६॥
समः सर्वेषां समानो यो सर्गः पुण्यं वा समायस्तस्मिन् भवं, तदेव प्रयोजनं पुण्यं तेन दीव्यतीति वा सामायिक समये भवं वा सामायिक। चतुर्विंशतिस्तव: चतुर्विंशतितीर्थंकराणां स्तवः स्तुतिः। वन्दना सामान्यरूपेण स्तुतिर्जयति भगवानित्यादि, पंचगुरुभक्तिपर्यन्ता पचपरमेष्ठिविषयनमस्कारकरणं वा शुद्धभावेन। प्रतिक्रमणं व्यतिक्रान्तदोषनिर्हरणं व्रतायुच्चारणं च । प्रत्याख्यानं भविष्यत्कालविषयवस्तुपरित्यागश्च । तथा कायोत्सर्गो भवति षष्ठः । सामायिकावश्यकनियुक्तिः चतुर्विंशतिस्तवाश्यकनियुक्तिः, वन्दनावश्यकनियुक्तिः, प्रतिक्रमणावश्यकनियुक्तिः, प्रत्याख्यानावश्यकनियुक्तिः, कायोत्सर्गावश्यकनियुक्तिरिति ॥५१६॥
तत्र सामायिकनामावश्यकनियुक्ति वक्तुकाम: प्राह--
सामाइयणिज्जुत्ती वोच्छामि जहाकम समासेण ।
प्रायरियपरंपराए जहागदं प्राणुपुवीए ।।५१७।। अब उन आवश्यक नियुक्ति के भेदों का प्रतिपादन करते हैं
गाथार्थ-सामायिक चतुर्विंशतिस्तव, वन्दना, प्रतिक्रमण, प्रत्याख्यान और छठा कायोत्सर्ग ये छह हैं ॥५१६।।।
प्राचारवृत्ति-सम अर्थात् सभी का समान रूप जो सर्ग अथवा पुण्य है उसे 'समाय' कहते है (पुण्य का नाम 'अय' भी है अतः पुण्य के पर्यायवाची शब्द से सम+अय -समाय बना है। उसमें जो होवे सो सामायिक है ! यहाँ 'समाय' में इकण् प्रत्यय होकर बना है) अथवा वही पुण्य प्रयोजन है जिसका, अथवा 'तेन दीव्यति' उस समाय से शोभित होता है (इस अर्थ में भी इकण् प्रत्यय हो गया है ) अथवा समय में जो होवे सो सामायिक है। चौबीस तीर्थंकरों को स्तुति को चतुर्विशतिस्तव कहते हैं।
सामान्यरूप से "जयति भगवान् हेमांभोजप्रचारविजंभिता-" इत्यादि चैत्यभक्ति से लेकर पंचगुरुभक्ति पर्यन्त विधिवत् जो स्तुति की जाती है उसे वन्दना कहते हैं अथवा शद्ध भाव से पंच परमेष्ठी विषयक नमस्कार करना वन्दना है। पूर्व में किये गये दोषों का निराकरण करना और व्रतादि का उच्चारण करना अर्थात् व्रतों के दण्डकों का उच्चारण करते हए उन सम्बन्धी दोषों को दूर करने के लिए मिच्छामे दुक्कड' वोलना सो प्रतिक्रमण है। भविष्यकाल के लिए वस्तु का त्याग करना प्रत्याख्यान है । तथा काय से ममत्व का त्याग करना कायोत्सर्ग है। इस प्रकार सामायिक आवश्यक नियुक्ति, चतुर्विशति आवश्यक नियुक्ति, वन्दना आवश्यक नियुक्ति, प्रतिक्रमण आवश्यक नियुक्ति, प्रत्याख्यान आवश्यक नियुक्ति और कायोत्सर्ग आवश्यक नियुक्ति ये छह भेद हैं।
अब उनमें से सामायिक नामक आवश्यक निर्यक्ति को कहते हैं
गाथार्थ-आचार्य परम्परानुसार आगत क्रम से संक्षेप में मैं क्रम से सामायिक नियुक्ति को कहूँगा ॥५१७॥
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