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[मूलाचारे यत्नेन युक्तोऽथवा सदाचारः शोभनाचारः सम्यग्ज्ञानवांश्च सदा सर्वकालमाचरितं चर आचरितं गणधरादिरभिप्रेतं चेष्टितं चरतीति वा चरितं चरोऽथवा चरणीयं श्रामण्ययोग्यं दीक्षाकालं च शिक्षाकालं च चरितवानिति कृतकृत्य इत्यर्थः । आचारमन्यान् साधूनाचारयन् हि यस्मात् प्रभासते तस्मादाचार्य इत्युच्यते ॥५०६।। तथा
जम्हा पंचविहाचारं प्राचरंतो पभासदि।
पायरियाणि देसंतो पायरियो तेण वुच्चदे ॥५१०॥
श्लोकोऽयं । पचविधमाचार दर्शनाचारादिपंचप्रकारमाचारं चेष्टयन् । प्रभासते शोभते । आचरितानि स्वानुष्ठानानि दर्शयन् प्रभासते आचार्यस्तेन कारणेनोच्यते इति। एवं विशिष्टाचार्यस्य यो नमस्कार करोति स सर्वदुःखमोक्ष प्राप्नोत्यचिरेण कालेनेति ॥५१॥
उपाध्यायनिरुक्तिमाह
बारसंगे जिणक्खादं सज्झायं कथितं बुधे।
उवदेसइ सज्झायं तेणुवज्झाउ उच्चदि ॥५११॥ अर्थात् रात-दिन होने वाले आचरणों को जो परमार्थ से जानते हैं, यत्नपूर्वक उसमें लगे हुए हैं। अथवा जो सदाचार-शोभन आचार का पालन करते हैं, सम्यग्ज्ञानवान् हैं, वे आचारविद् कहलाते हैं । जो सर्वकाल गणधर देव आदिकों के द्वारा अभिप्रेत अर्थात् आचरित आचरण को धारण करते हैं अथवा जो श्रमणपने के योग्य दीक्षा काल और शिक्षाकाल का आचरण करते हुए कृतकृत्य हो रहे हैं, तथा जो पाँच आचारों का अन्य साधुओं को भी आचरण कराते रहते हैं इसी हेतु से व 'आचार्य' इस नाम से कहे जात है।
उसी प्रकार से और भी लक्षण बताते हैं
गाथार्थ-जिस कारण वे पाँच प्रकार के आचारों का स्वयं आचरण करते हुए शोभित होते हैं और अपने आचरित आचारों को दिखलाते हैं इसी कारण से वे आचार्य कहलाते हैं।
आचारवृत्ति-यह श्लोक है। दर्शनाचार आदि पाँच आचारों को धारण करते हुए जो शोभित होते हैं और अपने द्वारा किये गये अनुष्ठानों को जो अन्यों को दिखलाते-बतलाते हुए अर्थात् आचरण कराते हुए शोभित होते हैं, इसी कारण से वे आचार्य इस सार्थक नाम से कहें जाते हैं।
इन गुणों से विशिष्ट आचार्यों को जो नमस्कार करता है वह शीघ्र ही सर्व दुःखों से मुक्ति पा लेता है।
उपाध्याय का निरुक्ति अर्थ कहते हैं
गाथार्थ-जिनेन्द्रदेव द्वारा व्याख्यात द्वादशांग को विद्वानों ने स्वाध्याय कहा है ! जो उस स्वाध्याय का उपदेश देते हैं वे इसी कारण से उपाध्याय कहलाते है ॥५११॥ .फलटन की प्रति में यह गाथा अधिक है
आइरिय णमोक्कारं भावेण य जो करेदि पयद मदी।
सो सव्वदुक्ख मोक्खं पावदि अचिरेण कालेण ॥
अर्थात् जो भव्यजीव भाव से एकाग्रचित्त होकर आचार्यों को नमस्कार करता है वह शीघ्र ही सर्वदुःखों से मुक्त हो जाता है।
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