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३५२. ]
[ मूलाचारे
दिनानि स स्वदेश इत्युच्यते । इत्येवं जलगतं स्थलगतमाकाशगतं च तद्भूतेन नीयते इति तद्भुतमित्युच्यते । यदेतत्सम्बन्धिनो वचनस्य नयनं स एष दूतदोषो भवति । दूतकर्म शासनदोषायेति दोषदर्शनादिति ॥ ४४८ ||
निमित्तस्वरूपमाह —
वंजणमंगं च सरं णिण्णं भूमं च अंतरिक्खं च ।
लक्खण सुविणं च तहा श्रट्ठविहं होइ णेमित्त ॥४४६ ॥
व्यञ्जनं मशकतिलकादिकं । अङ्गं च शरीरावयवः । स्वरः शब्दः । छिन्नः छेदः, खड्गादिप्रहारो वस्त्रादिच्छेदो वा । भूमि भूमिविभागः । अन्तरिक्षमादित्यगृहाद्युदयास्तमनं । लक्षणं नन्दिकावर्त पद्मचक्रादिकं । स्वप्नश्च सुप्तस्य हस्तिविमानमहिषा रोहणा दिदर्शनं च तथाष्टप्रकारं भवति निमित्तं । व्यञ्जनं दृट्वा यच्छुभाशुभं ज्ञायते पुरुषस्य तद्वयञ्जननिमित्तमित्युच्यते । तथाङ्गं शिरोग्रीवादिकं दृष्ट्वा पुरुषस्य यच्छुभाशुभं ज्ञायते तदङ्गनिमित्तमिति । तथा यं स्वरं शब्दविशेषं श्रुत्वा पुरुषस्यान्यस्य वा शुभाशुभं ज्ञायते तत्स्वरनिमि
दिन रहते हैं वह स्वदेश कहलाता है । जल से पार होते समय, स्थल से जाते समय या आकाश मार्ग से गमन करते समय जो दूत के द्वारा समाचार ले जाया जाता है वह दूर्तकर्म सम्बन्धी वचन को लेजाने वाले साधु को भी दूत नाम का दोष होता है । क्योंकि यह दूतकर्म जिन शासन में दोष का कारण है अतः दोष रूप है ।
उस
निमित्त का स्वरूप कहते हैं
गाथार्थ - व्यंजन, अंग, स्वर, छिन्न, भूमि, अंतरिक्ष और स्वप्न इस तरह निमित्त आठ प्रकार का होता है || ४४६ ॥
श्राचारवृत्ति-मशक तिलक आदि व्यंजन हैं। शरीर के अवयव अंग हैं । शब्द को स्वर कहते हैं । छन्द का नाम छिन्न है । खड्ग आदि का प्रहार अथवा वस्त्रादि का छिन्न होना'कट-फट जाना यह सब छिन्न है । भूमिविभाग को भूमि कहते हैं । सूर्य, ग्रह आदि के उदय-अस्त सम्बन्धी ज्ञान को अंतरिक्ष कहते हैं, नन्दिका वर्त, पद्मचक्र आदि लक्षण हैं। सोते में हाथी, विमान, भैंस पर आरोहण आदि देखना स्वप्न है । इस तरह निमित्त ज्ञान आठ प्रकार का होता है । उसका स्पष्टीकरण
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किसी पुरुष के व्यंजन-मसा तिल आदि को देखकर जो शुभ या अशुभ जाना जाता है। वह व्यंजन निमित्त है । किसी पुरुष के सिर, ग्रीवा आदि अवयव देखकर जो उसका शुभ या अशुभ जाना जाता है वह अंग निमित्त है । किसी पुरुष या अन्य प्राणी के शब्द विशेष को सुनकर जो शुभ-अशुभ जाना जाता है वह स्वर निमित्त है। किसी प्रहार या छेद को देखकर किसी पुरुष या अन्य का जो शुभ-अशुभ जाना जाता है वह छिन्न निमित्त है। किसी भूमिविभाग को देखकर किसी पुरुष या अन्य का जो शुभ-अशुभ जाना जाता है वह भौमनिमित्त है । आकाश में होने वाले ग्रह युद्ध, ग्रहों का अस्तमन, ग्रहों का निर्घात आदि देखकर जो प्रजा का शुभ या अशुभ जाना जाता है वह अंतरिक्ष निमित्त है । जिस लक्षण को देखकर पुरुष या अन्य का शुभअशुभ जाना जाता है वह लक्षणनिमित्त है । जिस स्वप्न को देखकर पुरुष या अन्य किसी का
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