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[मूलाधारे शीतं वा पानं उष्णेन भक्तादिना संयोजयति । अन्यदपि विरुद्ध परस्परं यत्तद्यदि संयोजयति तस्य संयोजननाम दोषो 'भवति । अतिमात्र आहार:-अशनस्य सव्यंजनस्य द्वयभागं तृतीयभागमुदकस्योदरस्य' य: पूरयति, चतर्थभागं चावशेषयति यस्तस्य प्रमाणभूत आहारो भवति, अस्मादन्यथा यः कुर्यात्तस्यातिमात्रो नामाहारदोषो भवति । प्रमाणातिरिकते आहारे गृहीते स्वाध्यायो न प्रवर्तते, षडावश्यकक्रियाः कतुं न शक्यंते, ज्वरादयश्च संतापयन्ति, निद्रालस्यादयश्च दोषा जायते इति ॥४७६॥
अंगारधूमदोषानाह
तं होदि 'सयंगालं जं प्राहारेदि मुच्छिदो संतो।
तं पुण होदि सधूम जं आहारेदि णिदिदो॥४७७।।
यदि मूछितः सन् गृद्धयाद्यायु मुक्तः आहारत्यभ्यवहरति भुक्ते तदा तस्य पूर्वोक्तोऽङ्गारादिदोषो भवति, सुष्ठु गृद्धिदर्शनादिति । तत्पुनर्भवति स पूर्वोक्तो धूमो नाम दोषः, यस्मादाहरति निंदन्जुगुप्समानो विरूपकमेतदनिष्टं मम, एवं कृत्वा यदि भुक्ते तदानीं धूमो नाम दोषो भवत्येव, अन्तःसंक्लेशदर्शनादिति ।
कारणमाह
छहि कारणेहिं असणं आहारतो वि पायरदि धम्म ।
छहिं चेव कारणेहि दुणिज्जुहंतो वि पाचरदि ।।४७८।।
व्यंजन आदि भोजन से उदर के दो भाग पूर्ण करना और जल से उदर का तीसरा भाग पूर्ण करना तथा उदर का चतुर्थ भाग खाली रखना सो प्रमाणभूत आहार कहलाता है। इससे भिन्न जो अधिक आहार ग्रहण करते हैं उनके प्रमाण या अतिमात्र नाम का आहार दोष होता है। प्रमाण से अधिक आहार लेने पर स्वाध्याय नहीं होता है, षट्-आवश्यक क्रियएिँ करना भी शक्य नहीं रहता है । ज्वर आदि रोग भी उत्पन्न होकर संतापित करते हैं तथा निद्रा और आलस्य आदि दोष भी होते हैं । अतः प्रमाणभूत आहार लेना चाहिए।
अंगार और धूम दोष को कहते हैं
गाथार्थ-जो गृद्धि युक्त आहार लेता है वह अंगार दोष सहित है। जो निन्दा करते हुए आहार लेता है उसके धूम दोष होता है ।।४७७।।
आचारवृत्ति-जो मूछित होता हुआ अर्थात् आहार में गृद्धता रखता हुआ आहार लेता है उसके अंगार नाम का दोष होता है, क्योंकि उसमें अतीव गृद्धि देखी जाती है।
जो निन्दा करते हुए अर्थात् यह भोजन विरूपक है, मेरे लिए अनिष्ट है, ऐसा करके भोजन करता है उसके धूम नाम का दोष होता है क्योंकि अंतरंग में संक्लेश देखा जाता है ।
कारण को कहते हैं
गाथार्थ-छह कारणों से भोजन ग्रहण करते हुए भी धर्म का आचरण करते हैं और छह कारणों से ही छोड़ते हुए भी धर्म का आचरण करते हैं ॥४७८॥ १ क 'त्येव । २ क 'उदकस्यानेन विधनोदरं यः। ३ क सङ्गालं । ४ क "रेवि मु।
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