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प्रतिबाला प्रतिवुड्ढा घासत्ती गब्भिणी य अंधलिया । अंतरिदा व णिसण्णा उच्चत्था ग्रहव णीचत्था ॥ ४६६ ॥
सूति: या बालं प्रसाधयति । सुंडी - मद्यपानलम्पटः । रोगी व्याधिग्रस्तः । मदय - मृतकं श्मशाने परिक्षिप्यागतो यः स मृतक इत्युच्यते । मृतकसूतकेन यो जुष्टः सोऽपि मृतक इत्युच्यते । नउंसयन स्त्री न पुमान् नपुंसकमिति जानीहि । पिशाचो वाताद्युपहतः । नग्नः पटाद्यावरणरहितो गृहस्यः । उच्चारं मूत्रादीन् कृत्वा य आगतः स उच्चार इत्युच्यते । पतितो मूर्च्छागतः । वान्तश्छदिं कृत्वा य आगतः । रुधिरं रुधिरसहितः । वेश्या दासी । श्रमणिकायिका । अथवा पंचश्रमणिका रक्तपटिकादयः । अंगम्रक्षिका अंगाभ्यंगनकारिणी ॥४६८ ।। तथा
अतिबाला अतिमुग्धा, अतिवृद्धा अतीवजराग्रस्ता । ग्रासयन्ती भक्षयन्ती उच्छिष्टा । गर्मिणी गुरुद्वारा पंचमासिका । अंधलिका चक्षूरहिता । अन्तरिता कुड्यादिभिव्यवहिता । आसीनोपविष्टा । उच्चस्था नतप्रदेशस्थिता । नीचस्था निम्नप्रदेशस्थिता । एवं पुरुषो वा वनिता च यदि ददाति तदा न ग्राह्यं भोजनादकमिति ॥ ४६६ ॥ तथा
[मूलाचारे
फयण पज्जलणं वा सारण पच्छादणं च ' विज्भवणं । किच्चा तहग्गिकज्जं णिव्वादं घट्टणं चावि ॥४७० ॥
हुई, बैठी हुई, ऊँचे पर खड़ी हुई या नीचे स्थान पर खड़ी हुई आहार देवें तो दायक दोष है ।। ४६८-४६६।।
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आचारवृत्ति - जो बालक को सजाती है वह सूति या धाय कहलाती है । शौंडी - मद्यपान लंपट । रोगी - व्याधिग्रस्त । श्मशान में मृतक को छोड़कर आया हुआ भी मृतक कहलाता है और जो मृतक के सूतक-पातक से युक्त है वह भी मृतक कहलाता है । जो न स्त्री है न पुरुष वह नपुंसक है । वात आदि से पीड़ित को पिशाच कहा है । वस्त्र आदि आवरण से रहित गृहस्थ नग्न कहलाते हैं । मल-मूत्रादि करके आये हुए जन को भी उच्चार शब्द से कहा गया है । वमन करके आए हुए को वान्ति कहा गया है। मूर्च्छा की बीमारीवाला या मूच्छित हुआ पतित कहलाता है। जिसके रुधिर निकल रहा है उसको रुंधिर शब्द से कहा है । वेश्यादासी, श्रमणिका - आर्यिका, रक्तपट वगैरह धारण करने वाली साध्वियाँ, अंगम्रक्षिका अर्थात् तैलादि मालिश करने वाली । तथा
अतिबाला, अतिमूढ़ा, अतिवृद्धा - अत्यधिक जरा से जर्जरित, भोजन करती हुई, गर्भिणी -पंच महीने के गर्भ वाली (अर्थात् पाँच महीने के पहले तक आहार दे सकती है।), अंधलिका - जिसे नेत्र से दिखता नहीं है, अन्तरिका - जो दीवाल यदि की आड़ में खड़ी है, निषण्णा - जो बैठी हुई है, उच्चस्था - जो ऊँचे प्रदेश पर स्थित है और नीचस्था - जो नीचे प्रदेश पर स्थित है, ऐसी स्त्री ( या कुछ विशेषण सहित पुरुष) यदि आहार देते हैं तो मुनि उसे नहीं ले । तथागाथार्थ - फूंकना, जलाना, सारण करना, ढकना, बुझाना, तथा लकड़ी आदि को हटाना, या पीटना इत्यादि अग्नि का कार्य करके,
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