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डिद्धि-अधिकारः ]
उद्भिन्नदोषमाह-
पिहिदं लंछिदयं वा ओसह्रिदसक्करादि जं दव्वं । भणिऊण देयं उम्भिण्णं होदि णादव्वं ॥४४१॥
पिहितं पिधानादिकेनावृतं कर्दमजंतुना वा संवृतं । लांछितं मुद्रितं नामबिवादिना च यदोषधं घृतशर्करादिकं गुडखंडलडुकादिकं द्रव्यमुद्भिद्योघाट्य देयं स उद्भिन्नदोषो भवति ज्ञातव्यः पिपीलिकादिप्रवेशदर्शनादिति ||४४१॥
मालारोहणं दोषं निरूपयन्नाह -
frentegraहि णिहिदं पूयादियं तु घेत्तू णं ।
मालारोह किच्चा देयं मालारोहणं णाम ||४४२ ॥
निःश्रेण्या काष्ठादिभिर्हेतुभूतैर्माला रोहणं कृत्वा मालं द्वितीयगृहभूमिमारुह्य गृहोर्ध्वभागं चारुह्य निहितं स्थापितमपूपादिकं मंडक लड्डुकशर्करादिकं गृहीत्वा यद्देयं स मालारोहों नाम दोषः । दातुरपायदर्शनादिति ॥ ४४२॥
अच्छेद्यदोषस्वरूपमाह
श्रावक ईर्यापथ श ुद्धि का पालन नहीं कर पायेंगे ।
उद्भिन्न दोष को कहते हैं
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गाथार्थ - ढके हुए या मुद्रा से बन्द हुए जो औषधि, घी, शक्कर आदि हैं उन्हें खोल कर देना सो उद्भिन्न दोष होता है ऐसा जानना ||४४१ ॥
आचारवृत्ति - जो ढक्कन आदि से ढकी हुई है अथवा जिस पर लाख या चपड़ी लगी हुई है, जो नाम या बिंब आदि से मुद्रित है अर्थात् जिसपर शील- मुहर लगी हुई है ऐसी जो कोई भी वस्तु, औषधि, घी, शक्कर या गुड़, खांड, लड्डुक आदि चीजें हैं उन्हें उसी समय खोलकर देना सो उद्भिन्न दोष है; क्योंकि उनमें चींटी आदि का प्रवेश हो सकता है । अर्थात् कदाचित् ऐसी वस्तुओं में चिवटी वगैरह प्रवेश कर गई हों तो उस समय उन्हें बाधा पहुँचेगी ।
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मालारोहण दोष को कहते हैं
गाथार्थ-नसैनी, काठ आदि के द्वारा चढ़कर रखी हुई पुआ आदि वस्तु को लाकर देना सो मालारोहण बोष है ।। ४४२ ।।
आचारवृति-नसैनी (काठ आदि की सीढ़ी ) से माल अर्थात् घर के दूसरे भाग पर-ऊपरी भाग पर चढ़कर वहाँ पर रखे हुए पुआ, मंडक, लड्डू, शक्कर आदि लाकर जो उस समय देना है, सो वह मालारोहण दोष है । इसमें दाता के गिरने का भय देखा जाता है ।
अच्छेद्य दोष को कहते हैं
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