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रायाचोरादीहिंय संजदभिक्खासमं तु दठ्ठण ।
बीण णिज्जं श्रच्छिज्जं होदि णादव्वं ॥ ४४३॥
संयतानां भिक्षाश्रमं दृष्टवा राजा चौरादय एवमाहुः कुटुम्विकान् यदि संयतानामागतानां भिक्षादानं न कुरु (र्व) ते तदानीं युष्माकं द्रव्यमपहरामो ग्रामाद्वा निर्वासयाम इति । एवं राज्ञा चौरादिभिर्वा कुटुम्बिकान् भावयित्वा नियुक्तं नियोजितं यद्दानं नाम तदाच्छेद्यं नाम दोपो भवति ज्ञातव्यः । कुटुम्बिनां भयकरणादिति ||४४३ ||
अनीशार्थदोषस्वरूपं विवृण्वन्नाह—
प्रणिट्ट पुर्ण दुविह इस्सरमह णिस्सरं चदुवियप्पं । पढमिस्सर सारक्खं वत्तावत्तं च संघाडं ॥ ४४४ ॥
[मूलाचारे
अनीशार्थोऽप्रधानहेतुः । स पुनद्वविध ईश्वरो वानीश्वरश्च । अथवाऽ धनेश्वर इति पाठः । अनीशोऽप्रधानोऽर्थः कारणं यस्योदनादिकस्य तदौदनादिकमनीशार्थं तद्ग्रहणे यो दोषः सोऽप्यनीशार्थः कारणे कार्योपचारादिति । स चानीशार्थो द्विविधः ईश्वरानीश्वरभेदेन । द्विविधोऽपि चतुर्विधः । प्रथम ईश्वरो दानस्य सारक्षः सहारक्षैर्वर्तते इति सारक्ष: यद्यपि दातुमिच्छति तथापि दातुं न लभतेऽन्ये विघातं कुर्वन्ति तत्तस्य ददतः
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गाथार्थ - संयत को भिक्षा के लिए देखकर और राजा या चोर आदि से डरकर जो उन्हें आहार देना है वह आछेद्य दोष है ||४४३॥
श्राचारवृत्ति - संयतों को भिक्षा के लिए आते देखकर राजा या चोर आदि कुटुम्बियों को ऐसा कहे कि यदि आप आए हुए संयतों को आहार दान नहीं दोगे तो मैं तुम्हारा द्रव्य अपहरण कर लूंगा या तुम्हें ग्राम से बाहर निकाल दूंगा । इस प्रकार से राजा या चोर आदि के द्वारा कृटुम्ब को डराकर जो आहार देने में लगाया जाता है, उस समय उन दातारों के द्वारा दिया गया दान आछेद्य दोष वाला होता है; क्योंकि वह कुटुम्बियों को भय का करने वाला है ।
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अनीशार्थ दोष का स्वरूप कहते हैं
गाथार्थ - अनीशार्थ दोष दो प्रकार का है - ईश्वर और अनीश्वर । ईश्वर भी सारक्ष, व्यक्त, अव्यक्त और संघाटक इन चार भेदरूप है ||४४४ ||
आचारवृत्ति - जो अप्रधान हेतु है वह अनीशार्थं कहलाता है । उसके दो भेद हैंईश्वर और अनीश्वर । अथवा धनेश्वर ऐसा भी पाठ है। अनीश- अप्रधान, अर्थ- कारण है जिस ओदनादिक भोज्य पदार्थ का वह भोजन अनीशार्थ है । उस भोजन के ग्रहण में जो दोष है वह भी अनीशार्थ है । यहाँ कारण में कार्य का उपचार किया है । और वह अनीशार्थ दोष ईश्वर और अनीश्वर के भेद से दो प्रकार का है। इन दोनों भेद के भी चार भेद हैं-
प्रथम अनीशार्थ ईश्वर दोष को कहते हैं - इसका नाम सारक्ष ईश्वर दोष भी है । जो आरक्षों के साथ रहे वह सारक्ष है, वह यद्यपि दान देना चाहता है फिर भी नहीं दे पाता है, अन्य लोग विघात कर देते हैं । वह ईश्वर - स्वामी देता है और अन्य अमात्य पुरोहित आदि
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