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[मूलाचारे जलतंदुलपक्लेवो दाणटुं संजदाण 'सयपयणे ।
अझोवज्झं णेयं अहवा पागं तु जाव रोहो वा ॥४२७॥
जलतंदूलानां प्रक्षेपः दानार्थ, संयतं दृष्ट्वा स्वकीयपचने संयतानां दानार्थं स्वस्य निमित्त यजलं पिठरे निक्षिप्तं तंदुलाश्च स्वस्य निमित्तं ये स्थापितास्तस्मिन् जलेऽन्यस्य जलस्य प्रक्षेपः तेष च तंदलेष्यन्येषां तंदलानां प्रक्षेपणं यदेवंविधं तदध्यधि दोषरूपं यं । अथवा पाको यावता कालेन निष्पद्यते तस्य कालो स्तावन्तं कालमासीन उदीक्षत एतदध्यधि दोषजातमिति ॥४२७॥
पूतिदोषस्वरूपं निगदन्नाह
अप्पासुएण मिस्सं पासुयदव्वं तु पूदिकम्म तं ।
चुल्ली उक्खलि दव्वी भायणगंधत्ति पंचविहं ॥४२८॥
प्रासुकमप्यप्रासुकेन सचित्तादिना मिश्रं यदाहारादिकं स पूतिदोषः । प्रासुकद्रव्यं तु पूतिकर्म यत्तदपि पतिकर्म, पंचप्रकारं चल्ली रन्धनी । उक्खलि उदूखलः । दम्वी-दर्वी । भायण--भाजनं। गन्धति राम
गाथार्थ-मुनियों के दान के लिए अपने पकते हुए भोजन में जल या चावल का और मिला देना यह अध्यधि दोष है । अथवा भोजन बनने तक रोक लेना यह भी अध्यधि दोष है।४२७॥
आचारवत्ति-अपने निमित्त बटलोई आदि पात्र में जो जल चढ़ाया है या अपने निमित्त जो चावल चूल्हे पर चढ़ाये हैं, संयतों को आते हुए देखकर उनके दान के लिए उस जल में और अधिक जल डाल देना या चावल में और अधिक चावल मिला देना यह अध्यधि नाम का दोष है। अथवा जब तक भोजन तैयार होता है तब तक उन्हें रोक लेना, तब तक वे मनि बैठे हए प्रतीक्षा करते रहें अर्थात् किसी हेतु से उन्हें रोके रखना यह भी अध्यधि दोष है।
पूतिदोष का स्वरूप कहते हैं
गाथार्थ-अप्रासुक द्रव्य से मिथ हुआ प्रासुकद्रव्य भी पूतिकर्म दोष से दूषित हो जाता है। यह चूल्हा, ओखली, कलछी या चम्मच, वर्तन और गन्ध के निमित्त ये पाँच प्रकार का है ॥४२८॥ .
__ आचारवृत्ति-प्रासुक भी आहार आदि यदि अप्रासुक-सचित्त आदि से मिश्रित हैं तो वे पतिदोष से दषित हो जाते हैं। इस पूतिकर्म के पाँच प्रकार हैं। चूल्हा, ओखली, कलछी, वर्तन और गन्ध । इस नये चूल्हे या सिगड़ी आदि में भात आदि बनाकर पहले मुनियों को दूंगा पश्चात् अन्य किसी को दूंगा इस प्रकार प्रासुक भी भात आदि द्रव्य पूतिकर्म अप्रासूक रूप भाव से बनाया हआ होने से पूति कहलाता है। ऐसे ही, इस नयी ओखली में कोई चीज चूर्ण करके जब तक मुनियों को नहीं दूंगा तब तक अन्य किसी को नहीं दूंगा और न मैं ही अपने प्रयोग में लंगा इस प्रकार से बनाई हुई वह प्रासुक भी वस्तु अप्रासुक हो जाती है। इसी तरह इस कलछी या चम्मच से जब तक यतिओं को नहीं दे दूंगा तब तक अपने या अन्य के प्रयोग में नहीं ११क संपयणे । २ क संयतान् ।
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