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पंचाचाराधिकारः] शास्त्रशिक्षणतत्परे दुःशीले वा दुर्बले व्याध्याक्रान्ते वा। साधुगणे ऋषियतिमुन्यनगारेषु । कुले 'शुक्रकुले स्त्रीपुरुषसन्ताने । संघे चातुर्वर्ण्य श्रवणसंधे। समनोज्ञे सुखासीने सर्वोपद्रवरहिते। आपदि चोपद्रवे संजाते वयावृत्यं कर्तव्यमिति ॥३०॥
कैः कृत्वा वैयावृत्यं कर्तव्यमित्याह--
सेज्जोग्गासणिसेज्जो तहोवहिपडिलेहणा हि उवग्गहिदे।
आहारोसहवायण विकिचणं वंदणादीहिं॥३६१॥ शय्यावकाशो वसतिकावकाशदानं निषद्याऽऽसनादिकं । उपधिः कुण्डिकादि । प्रतिलेखनं पिच्छिकादिः । इत्येतैरुपग्रह उपकारः । अथवैतैरुपगृहीते स्वीकृते । तथाहारौषधवाचनाव्याख्यानविकिंचनमूत्रपुरीषादिव्यूत्सर्गवन्दनादिभिः । आहारेण भिक्षाचर्यया । औषधेन शुंठिपिप्पल्यादिकेन । शास्त्रव्याख्यानेन । च्युतमलनिहरणेन । वन्दनया च। शय्यावकाशेन निषद्ययोपधिना प्रतिलेखनेन च पूर्वोक्तानामुपकारः कर्तव्यः । एतस्ते प्रतिगहीता आत्मीकृता भवन्तीति ।।३६१।।
केषु स्थानेषूपकारः क्रियतेऽत आहवाले अथवा व्याधि से पीड़ित, साधुगण-ऋषि, यति, मुनि और अनगार, कुल-गुरुकुल-परम्परा, संघ-चतुर्विध श्रमण संघ, समनोज्ञ-सुख से आसीन या सर्वोपद्रव से रहित ऐसे साधुओं पर आपत्ति या उपद्रव के आने पर वैयावृत्ति करना चाहिए।
विशेष—यहाँ पर कुल का अर्थ गुरुकुल-परम्परा से है । तीन पीढ़ी की मुनिपरम्परा को कुल तथा सात पीढ़ी की मुनिपरम्परा को गच्छ कहते हैं । 'मूलाचार-प्रदीप' (अध्याय ७ गाथा ६८-६६) के अनुसार, जिस मुनि-संघ में आचार्य, उपाध्याय, प्रवर्तक, स्थविर और गणाधीश ये पाँच हों उस संघ की कुल संज्ञा है।
क्या करके वैयावृत्ति करना चाहिए ? सो ही बताते हैं
गाथार्थ-वसति, स्थान, आसन तथा उपकरण इनका प्रतिलेखन द्वारा उपकार करना; आहार, औषधि आदि से; मलादि दूर करने से और उनकी वन्दना आदि के द्वारा वैयावृत्ति करना चाहिए ॥३६१॥
प्राचारवत्ति-शय्यावकाश-मुनियों को वसतिका का दान देना, निषद्या--मुनियों को आसन आदि देना, उपधि-कमण्डलु आदि उपकरण देना, प्रतिलेखन-पिच्छिका आदि देना,इन कार्यों से मुनियों का उपकार करना चाहिए, अथवा इनके द्वारा उपकार करके उन्हें स्वीकार करना । आहारचर्या द्वारा, सोंठ पिप्पल आदि औषधि द्वारा, शास्त्र-व्याख्यान द्वारा, कदाचित मल-मत्र आदि च्युत होने पर उसे दूर करने द्वारा, और वन्दना आदि के द्वारा वैयावत्ति करना चाहिए। तात्पर्य यह है कि वसतिका-दान, आसनदान, उपकरण-दान प्रतिलेखन आदि के द्वारा पूर्वोक्त साधुओं का उपकार करना चाहिए। इन उपकारों से वे अपने किये जाते हैं। .
किन स्थानों में उपकार करना ? सो ही बताते हैं१ क कुले गुरुकुले । 'कुले-शुक्रकुले स्त्रीपुरुषसन्ताने' इति पाठान्तरम् । २ क णा उवगाहिदो। ३ क दीणं ।
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